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________________ ९२] [ नन्दीसूत्र वहाँ से चल दी। क्षुल्लक की औत्पत्तिकी बुद्धि का यह उदाहरण है। (१४) मार्ग—एक पुरुष अपनी पत्नी के साथ रथ में बैठकर किसी अन्य ग्राम को जा रहा था। मार्ग में एक जगह रथ को रुकवा कर स्त्री लघुशंका-निवारण के लिए किसी झाड़ी की ओट में चली गई। इधर पुरुष जहाँ था वही पर एक वृक्ष पर किसी व्यन्तरी का निवास था। वह पुरुष के रूप में मोहित होकर उसकी स्त्री का रूप बना आई और आकर रथ में बैठ गई। रथ चल दिया किन्तु उसी समय झाड़ियों के दूसरी ओर गई हुई स्त्री आती दिखाई दी। उसे देखकर रथ में बैठी हुई व्यन्तरी बोली 'अरे, वह सामने से कोई व्यन्तरी मेरा रूप धारण कर आती हुई दिखाई दे रही है। आप रथ को द्रुत गति से ले चलिये।' पुरुष ने रथ की गति तेज कर दी किन्तु तब तक स्त्री पास आ गई थी और वह रथ के साथ-साथ दौड़ती हुई रो-रोकर कह रही थी—'रथ रोको स्वामी! आपके पास जो बैठी है वह तो कोई व्यन्तरी है जिसने मेरा रूप बना लिया है।' यह सुनकर पुरुष भौंचक्का रह गया। वह समझ नहीं पाया कि क्या करूँ, किन्तु रथ की गति उसने धीरे-धीरे कम कर दी। इस बीच अगला गाँव निकट आ गया था अतः दोनों स्त्रियों का झगड़ा ग्राम-पंचायत में पहुँचाया गया। पंच ने दोनों स्त्रियों के झगड़े को सुनकर अपनी बुद्धि से काम लेते हुए दोनों को उस पुरुष से बहुत दूर खड़ा कर दिया। कहा—'जो स्त्री पहले इस पुरुष को छू लेगी उसी को इस पुरुष की पत्नी माना जायेगा।' यह सुनकर असली स्त्री तो दौड़कर अपने पति को छूने का प्रयत्न करने लगी, किन्तु व्यन्तरी ने वैक्रिय-शक्ति के द्वारा अपने स्थान से ही हाथ लम्बा किया और पुरुष को छू दिया। न्यायकर्ता ने समझ लिया कि यह व्यन्तरी है। व्यन्तरी को भगाकर उस पुरुष को उसकी पत्नी सौंप दी गई। यह न्यायकर्ता की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। (१५) स्त्री—एक समय मूलदेव और पुण्डरीक दो मित्र कहीं जा रहे थे। उसी मार्ग से एक अन्य पुरुष भी अपनी पत्नी के साथ चला जा रहा था। पुण्डरीक उस स्त्री को देखकर उस पर मुग्ध हो गया तथा अपने मित्र मूलदेव से बोला—'मित्र! यदि यह स्त्री मुझे मिलेगी तो मैं जीवित रहूँगा, अन्यथा मेरी मृत्यु निश्चित है।' मूलदेव यह सुनकर परेशान हो गया। मित्र का जीवन बचाने की इच्छा से उसे साथ लेकर एक अन्य पगडंडी से चलता हुआ उस युगल के आगे पहुँचा तथा एक झाड़ी में पुण्डरीक को बिठाकर स्वयं पुरुष के समीप जा पहुँचा और बोला भाई! मेरी स्त्री के इस समीप की झाड़ी में ही बालक उत्पन्न हुआ है। अतः अपनी पत्नी को तनिक देर के लिए वहाँ भेज दो।' पुरुष ने मूलदेव को वास्तव में ही संकटग्रस्त समझा और अपनी पत्नी को झाड़ी की ओर भेज दिया। वह झाड़ी में बैठे पुण्डरीक की तरफ गई किन्तु थोड़ी देर में ही लौट कर वापिस आ गई तथा मूलदेव से हंसते हुए कहने लगी—'आपको बधाई है। बड़ा सुन्दर बच्चा पैदा हुआ है।' यह सुनकर मूलदेव बहुत शर्मिन्दा हुआ और वहाँ से चल दिया। यह उदाहरण मूलदेव और उस स्त्री की औत्पत्तिकी बुद्धि
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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