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________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [६५ वर्ष का तथा अनन्तकाल के प्रतिपाती हुए सिद्ध होने वालों का अन्तर १ वर्ष से कुछ अधिक का। जघन्य सब स्थानों में एक समय का अन्तर। (१२) अनुसमयद्वार—दो समय से लेकर आठ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं। (१३) गणनाद्वार—एकाकी या अनेक सिद्ध होने का अन्तर उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष का। (१४) अल्पबहुत्वद्वार—पूर्ववत्। (७)भावद्वार भाव छः होते हैं—औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, पारिणामिक और सान्निपातिक। क्षायिक भाव से ही सब जीव सिद्ध होते हैं। इस द्वार में १५ उपद्वारों का विवरण पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। (८)अल्पबहुत्वद्वार ऊर्ध्वलोक से सबसे थोड़े ४ सिद्ध होते हैं। अकर्मभूमि क्षेत्रों में १० सिद्ध होते हैं। वे उनसे संख्यातगुणा हैं। स्त्री आदि से २० सिद्ध होते हैं। वे संख्यात गुणा होते हैं, क्योंकि साध्वी का संहरण नहीं होता। उनसे अलग-अलग विजयों में तथा अधोलोक में २० सिद्ध हो सकते हैं। उनसे १०८ सिद्ध होने वाले संख्यातगुणा अधिक हैं। परम्परसिद्ध केवलज्ञान जिनको सिद्ध हुए एक समय से अधिक अथवा अनन्त समय हो गए हैं वे परम्परसिद्ध कहलाते हैं। उनका द्रव्यप्रमाण सात द्वारों में तथा १५ उपद्वारों में अनन्त कहना चाहिए क्योंकि ये अन्तरहित हैं, काल अनन्त है। सर्वक्षेत्रों से अनन्त जीव सिद्ध हुए हैं। अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञान ४१-से किं तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं ? अणंतरसिद्धकेवलनाणं पण्णरसविहं पण्णत्तं, तं जहा (१) तित्थसिद्धा (२) अतित्थसिद्धा (३) तित्थयरसिद्धा (४) अतित्थयरसिद्धा (५) सयंबुद्धसिद्धा (६) पत्तेयबुद्धसिद्धा (७) बुद्धबोहियसिद्धा (८) इथिलिंगसिद्धा (९) पुरिसलिंगसिद्धा (१०) नपुंसगलिंगसिद्धा । (११) सलिंगसिद्धा (१२) अन्नलिंगसिद्धा (१३) गिहिलिंगसिद्धा (१४) एगसिद्धा (१५) अणेगसिद्धा।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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