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प्रकाशकीय
उत्तराध्ययन-सूत्र के लिये यह मान्यता है कि श्रमण भगवान् महावीर को अंतिमदेशना के समय अपृष्ठ व्याकरण के रूप में इसके छत्तीस अध्ययनों का संगंफन हुआ है। एतदर्थ यहाँ विशेष ऊहापोह करने का प्रसंग नहीं है। परन्तु मुख्य उल्लेखनीय यह है कि भगवान् की समग्र-वाणी का यह सूत्र प्रतिनिधित्व करता है। इसी कारण जनसाधारण में उत्तराध्ययनसूत्र के पठन-पाठन की परम्परा विशेष रूप में देखी जाती है।
विशेष निर्देश के रूप में यह ज्ञातव्य है कि श्री आगम प्रकाशन समिति की निर्धारित नीति के अनुसार उत्तराध्ययनसूत्र के प्रथम व द्वितीय संस्करण प्रकाशित किये गये थे। आगम-बत्तीसी की मांग बढ़ते जाने से अनेक ग्रन्थों का पुनर्मुद्रण कराया जा रहा है। समग्र ग्रन्थों के दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। आचारांग, सूत्रकृतांगसूत्र १ व २ के तृतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। उत्तराध्ययनसूत्र आपके हाथों में है। शेष ग्रन्थों का प्रकाशन यथाक्रम किया जा रहा है।
ग्रन्थ के अनुवादक, विवेचक मुनि श्री राजेन्द्र मुनि शास्त्री ने अनुवाद के साथ विषय को स्पष्ट करने के लिये यथा प्रसंग आवश्यक विवेचन करके सर्वबोधगम्य बनाने का जो प्रयास किया है, वह प्रशंसनीय है एवं उनके प्रयास के प्रति प्रमोद भाव प्रकट करते हैं।
हम स्व. युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी म. सा."मधुकर "के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिनके परोक्ष आशीर्वाद का पाथेय लेकर समिति आगम प्रकाशन के लिये गतिशील है। यवाचार्य श्री के देवलोकवासी होने के पश्चात परम आदरणीया महासती साध्वी श्री उमराव कुँवरजी म. सा. के मार्गदर्शन में आगम प्रकाशन का कार्य उसी गति से चल रहा है। यह हम सब का सौभाग्य है।
ऑफसेट पद्धति से प्रकाशित होने वाले ग्रन्थों के तृतीय संस्करण का संशोधन वैदिक यन्त्रालय के पूर्व प्रबन्धक पं. सतीशचन्द्र शुक्ल ने किया है। शुक्लजी इन ग्रन्थों के प्रथम से तृतीय संस्करण के संशोधन कार्य में संलग्न रहे हैं, अतः हम उनके आभारी हैं। साथ ही उन सभी महानुभावों का सधन्यवाद आभार मानते हैं, जिनका प्रत्यक्ष व परोक्ष बौद्धिक व आर्थिक सहयोग प्राप्त है।
रतनचन्दमादा
सागरमल बैताला
अध्यक्ष
सायरमल चोरडिया सायरमल चाराड्या ज्ञानाच
ज्ञानचंद विनायकिया महामंत्री
कार्याध्यक्ष
मन्त्री
श्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान)