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समर्पण
जिनका जीवन अध्यात्मसाधना से अनुप्राणित था, जिनका व्यक्तित्व संयमाराधना से समन्वित था, जिन्होंने धर्म के विराटरूप का बोध कराया, जिन्होंने आजीवन निन्थि श्रमण-परम्परा का
प्रचार-प्रसार किया,
आज भी संघ जिनके ज्ञान-वैराग्यमय विचारों से उपकृत है,
जिनकी शिष्यानुशिष्य परम्परा
विशाल विराटरूप में प्रवर्तमान है, उन महामहिम, आदरणीय, श्रद्धास्पद श्रमणशिरोमणि
आचार्यश्री भूधरजी महाराज
के करकमलों में.
-मधुकर मुनि
(प्रथम संस्करण से)