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अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति
मोक्ष प्राप्ति के लिए चारों की उपयोगिता
३५. नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सहे । चरित्त्रेण निगिण्हाइ तवेण परिसुज्झई ॥
[३५] (आत्मा) ज्ञान से जीवादि भावों (पदार्थों) को जानता है, दर्शन से उन पर श्रद्धान करता है, चारित्र से (नवीन कर्मों के आश्रव का) निरोध करता है और तप से परिशुद्ध (पूर्वसंचित कर्मों का क्षय ) होता है ।
३६. खवेत्ता पुव्वकम्माई संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमन्ति महेसिणो ॥
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—त्ति बेमि ।
[३६] सर्वदुःखों से मुक्त होने के लिए महिर्ष संयम और तप से पूर्वकर्मों का क्षय करके (मुक्ति को ) प्राप्त करते हैं । - ऐसा मैं कहता हूँ ।
॥ मोक्षमार्गगति : अट्ठाईसवां अध्ययन समाप्त ॥
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