________________
सत्ताईसवाँ अध्ययन : खलुंकीय
कर जाते हैं । इस प्रकार विनीत शिष्य एवं सदाचार्य का योगसम्बन्ध संसार का उच्छेदकर होता है ।
अविनीत शिष्यों को दुष्ट वृषभों के विविधरूपों से उपमित
३
खलुंके जो उ जोड़ विहम्माणो किलिस्सई । असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से भज्जई ||
[३] जो खलुंक (दुष्ट- अविनीत) बैलों के वाहन में जोतता है, वह (व्यक्ति) उन्हें मारता हुआ क्लेश पाता ( थक जाता है; असमाधि का अनुभव करता है और ( अन्त में) उस ( हांकने वाले व्यक्ति) का चाबुक भी टूट जाता है।
४
एडस पुच्छंमि एगं विन्धइऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिलं एगो उप्पहपट्टिओ ।।
५
[४] (वह क्षुब्ध वाहक) किसी (एक) की पूंछ काट देता है, तो किसी (एक) को बार- बार बींधता है और उन बैलों में से कोई एक जुए की कील (समिला) को तोड़ देता है, तो दूसरा उन्मार्ग पर चल पड़ता है।
४३१
एगो पडड़ पासेणं निवेस निवज्जई ।
उक्कु उप्फिडई सढे बालगवी वए ॥
[४] कोई (दुष्ट बैल) मार्ग के एक ओर ( दायें या बाएँ पार्श्व में) गिर पड़ता है, कोई बैठ जाता है, कोई लम्बा लेट जाता है, कोई कूदता है, कोई उछलता ( या छलांग मारता ) है, कोई शठ ( धूर्त्त बैल) तरुण गाय की ओर भाग जाता है ।
६
माई मुद्धेण पडई कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं । मयलक्खेण चिट्ठई वेगेण य पहावई ।।
[६] कोई कपटी (मायी) बैल सिर को निढाल बना कर (भूमि पर गिर पड़ता है, कोई क्रोधित हो कर प्रतिपथ (— उत्पथ या उलटे मार्ग) पर चल पड़ता है, कोई मृतकवत् हो कर पड़ा रहता है, तो कोई वेग से दौड़ने लगता है ।
७
छिन्नाले छिन्दई सेल्लिं दुद्दन्तो भंजए जुगं । सेविय सुस्सुयाइत्ता उज्जहित्ता पलायए ।।
[७] कोई छिनाल (दुष्ट जाति का ) बैल रास को तोड़ डालता है, कोई दुर्दान्त हो कर जुए को तोड़ देता है और वही उद्धत बैल सूं-सूं आवाज करके ( वाहन और स्वामी) को छोड़ कर भाग जाता है।
१.
(क) उत्तरा (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. २, पत्र २१९
(ख) उत्तरा (अनुवाद टिप्पण) साध्वी चन्दना, पृ. २८२
*****
(ग) योगे संयमव्यापारे (विनीत) शिष्यान् वाहयतः आचार्यस्य संसार: अतिवर्तते, शिष्याणां विनीतत्त्वं दृष्ट्वा स्वयं समाधिमान् जायते । शिष्यास्तु विनीतत्वेन स्वयं संसारमुल्लंघ्यन्ते एवं, एवमुभयोर्विनीतशिष्यसदाचार्ययोर्योगःसम्बन्धः संसारच्छेदकर इति भावः । " - उत्तरा वृत्ति. अ. भा. रा. को. पृ. ९२५