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________________ चौबीसवाँ अध्ययन प्रवचनमाता अध्ययन-सार * प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'प्रवचनमाता' (पवयणमाया) अथवा 'प्रवचनमात' है। समवायांग के अनुसार इसका नाम 'समिईओ' (समितियाँ) है; मूल में इन आठों (पांच समितियों और तीन गुप्तियों) को समिति शब्द से कहा गया है, इसीलिए सम्भव है, समवायांग आदि में यह नाम रखना अभीष्ट लगा हो। * शास्त्रों में यत्र-तत्र पाँच समितियों (ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेप और उत्सर्ग) और तीन गुप्तियों ___(मनोगुप्ति, वाग्गुप्ति और कायगुप्ति) को 'अष्टप्रवचनमाता' कहा गया है। * जिस तरह माता अपने पुत्र की सदैव देखभाल रखती है, उसे सदा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है, उन्मार्ग पर जाने से रोकती है, बालक के रक्षण और चारित्र-निर्माण का सतत ध्यान रखती है, उसी प्रकार से आठों प्रवचनमाताएँ भी प्रत्येक प्रवृत्ति करते समय साधक की देखभाल करती हैं, सतत उपयोगपूर्वक सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं, असत्प्रवृत्ति में जाने से रोकती हैं, साधक की आत्मा का दुष्प्रवृत्तियों से रक्षण तथा उसके चारित्र (अशुभ से निवृत्ति एवं शुभ में प्रवृत्ति) के विकास का ध्यान रखती हैं। इसलिए ये आठों प्रवचन (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप) की, अथवा प्रवचन के आधारभूत संघ (श्रमणसंघ) की मातृस्थानीय हैं।२ * इन आठों में समस्त द्वादशांगरूप प्रवचन समा जाता है, इसलिए इन्हें 'प्रवचनमात' भी कहा गया है। * 'समिति' का अर्थ है-सम्यक्प्रवृत्ति, अर्थात् साधक की गति सम्यक् (विवेकपूर्वक) हो, भाषा सम्यक् (विवेक एवं संयम से युक्त) हो, सम्यक् एषणा (आहारादि का ग्रहण एवं उपयोग) हो, सम्यक् आदान-निक्षेप (लेना-रखना सावधानी से) हो और मलमूत्रादि का परिष्ठापन सम्यक् (उचित स्थान में विसर्जन) हो। * गुप्ति का अर्थ है-असत् से या अशुभ से निवृत्ति, अर्थात् मन से अशुभ-असत् चिन्तन न करना, वचन से अशुभ या असत् भाषा न बोलना तथा काया से अशुभ य असत् व्यवहार एवं आचरण न करना। * समिति और गुप्ति दोनों में सम्यक् और असम्यक् का मापदण्ड अहिंसा है। * ईर्यासमिति की परिशुद्धि के लिए आलम्बन, काल, मार्ग और यतना का विचार करे, स्वाध्याय एवं १. समवायांग, समवाय ३६ २. प्रवचनस्य तदाधारस्य वा संघस्य मातर इव प्रवचनमातरः। -समवायांगवृत्ति, सम.८ ३. उत्तरा. मूल अ. २४, गा. ३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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