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________________ बाईसवाँ अध्ययन ३४३ -रथनेमीयकिए गए हैं।' अरिष्टनेमि ने करुणार्द्र होकर सारथि को संकेत किया, सभी पशुपक्षी बन्धनमुक्त कर दिये गए। अरिष्टनेमि वापस लौट गए। बरातियों में कोलाहल मच गया। सभी प्रमुख यादव अरिष्टनेमि को समझाने लगे। अरिष्टनेमि ने सबको समझाया और वे अपने निर्णय पर अटल रहे । नेमिनाथ को वापस लौटते देख कर राजीमती मूर्च्छित और शोकमग्न हो गई। वह विलाप करने और नेमिनाथ को उपालंभ देने लगी। सखियों ने दूसरे यादवकुमारों के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा। स्वयं रथनेमि ने राजीमती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, परन्तु राजीमती ने स्पष्ट इन्कार कर दिया। रथनेमि साधु बन गए। अन्त में राजीमती पतिव्रता नारी की तरह अरिष्टनेमि के महान् संयमपथ का अनुसरण करने को तैयार हो गई। अरिष्टनेमि को केवलज्ञान होते ही राजीमती अनेक राजकन्याओं के साथ दीक्षित हुई। * भगवान् अरिष्टनेमि एक बार रैवतक पर्वत पर विराजमान थे। राजीमती आदि साध्वियाँ उनके दर्शनार्थ रैवतक पर्वत पर जा रही थीं, किन्तु मार्ग में ही आँधी और वर्षा के कारण सभी साध्वियाँ तितरबितर हो गईं। राजीमती अकेली एक गुफा में पहुँची। सुरक्षित स्थान देख उसने शरीर पर से गीले कपड़े उतारे और सूखने के लिए फैलाए। वहीं रथनेमि.ध्यानलीन थे, उन्होंने राजीमती को निर्वस्त्र देखा तो मन चंचल हो उठा। राजीमती के समीप आये, त्यों ही उसने अपनी बाहुओं से अपने वक्षस्थल आदि का संगोपन कर लिया। रथनेमि ने सती के समक्ष सांसारिक भोग भोगने का और ढलती उम्र में पुनः संयम लेने का प्रस्ताव रखा, किन्तु राजीमती ने कुल और शील की मर्यादाओं का उल्लेख करते हुए अपनी जोशीली वाणी से रथनेमि को समझाया और संयमपथ पर स्थिर किया। राजीमती के ओजस्वी बोधवचनों से रथनेमि उसी प्रकार नियंत्रित हो गए, जिस प्रकार अंकुश से हाथी नियंत्रित हो जाता है। अन्ततोगत्वा रथनेमि प्रभु अरिष्टनेमि से प्रायश्चित्त ग्रहण करके शुद्ध हुए। राजीमती और रथनेमि दोनों विशुद्ध संयम पालन कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बने। * प्रस्तुत अध्ययन के उत्तरार्द्ध में रथनेमि को राजीमती द्वारा किया गया बोधवचन संकलित है, जिसका उल्लेख "दशवैकालिकसूत्र" के द्वितीय अध्ययन में भी है। यह बोधवचन इतना प्रभावशाली एवं प्रेरणादायक है कि संयमपथ से भ्रष्ट होते हुए साधक को जागृत एवं सावधान कर देता है, भोगवासना को सहसा नियंत्रित कर देता है, पवित्र कुल का स्मरण करा कर साधक को वह भटकने से बचाता है। प्रत्येक साधक के लिए यह प्रकाशस्तम्भ है,जो उसकी जीवन-नौका को भोगवासना की चट्टानों से टकराने से बचाता है। यह बोधवचन शाश्वत सत्य है, अजर-अमर है। 00 १. 'वह गुफा आज भी 'राजीमतीगुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।' -विविधतीर्थकल्प, पृ.६ २. दशवकालिक अ.२, गा.६ से ११ तक
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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