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________________ प्रथम अध्ययन : द्रुमपुष्पिका १३ है ! इतने जलजन्तु आते हैं, उन्हें यों ही जाने देता है। अगर इसके जितना बड़ा मेरा शरीर होता तो मैं एक को भी नही जाने देता, सबको निगल जाता। इस प्रकार की हिंसक भावना के कारण अन्तर्मुहूर्त मात्र में ही वह मर कर सातवें नरक का मेहमान बन जाता है। २६ यह भावहिंसा का भयंकर परिणाम है। ३. उभयहिंसा— अशुद्ध परिणामों से जीव का घात करना उभयहिंसा है। जैसे कोई शिकारी मृग को मारने की भावना से बाण चलाता है, उससे उसके प्राणों का नाश हो जाता है। इस हिंसा में आत्मा के अशुद्ध (दुष्ट) परिणाम और प्राणों का नाश दोनों पाए जाते हैं। २७ अहिंसकक्रिया — इस प्रकार शुद्ध प्रेम, दया एवं अनुकम्पा तथा मैत्रीभाव रख कर उपयोगपूर्वक किसी भी प्राणी को दुःख पहुंचाने की भावना किये बिना शारीरिक, मानसिक या वाचिक क्रिया करना, वास्तव में अहिंसक - क्रिया है । ऐसी अहिंसा का आराधक केवल अहिंसक ही नहीं होता, अपितु सभी प्रकार की हिंसाओं का प्रबल विरोधी भी होता है । २८ संयम : स्वरूप, प्रकार और भेद - सावद्य योग से सम्यक् प्रकार से निवृत्त होना संयम है। आचार्य जिनदास महत्तर के अनुसार संयम का अर्थ उपरम है । अर्थात् रागद्वेष से रहित होकर एकीभाव — समभाव में स्थित होना संयम है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने संयम का अर्थ किया है— हिंसा आदि पांच आश्रवद्वारों से विरति करना संयम है। हिंसा आदि पांच आश्रवों से विरति, कषायविजय, पंचेन्द्रियनिग्रह, मन-वचन-काया के दण्ड से विरति या गुप्ति (विरति) तथा पांच समितियों का पालन, ये सब यहां संयम शब्द में समाविष्ट हैं । २९ संयम के मुख्य तीन प्रकार हैं— (१) कायिक संयम, (२) वाचिक संयम और (३) मानसिक संयम । शरीर से सम्बन्धित पदार्थों की आवश्यकताएं यथाशक्ति घटाना कायिक संयम है, वाणी को कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग में प्रवृत्त करना वाचिक संयम है और मन को दुर्विकल्पों से हटा कर सुव्यवस्थित सुनियंत्रित रखना प्रशस्त चिन्तन में व्यापृत रखना मानसिक संयम है। प्रकारान्तर से संयम के १७ भेद भी हैं, जो प्रसिद्ध हैं । १ अहिंसा का सम्यक्तया पालन करने के लिए संयम के इन १७ भेदों का परिज्ञान आवश्यक है। अभिप्राय यह है कि अहिंसा धर्म के सम्यक् परिपालन के लिए प्रत्येक कार्य को करते समय संयम के इन भेदों को ध्यान में २६. (क) तंदुलवेयालियं । (ख) दशवै. आचारमणि मंजूषा, भा. १, पृ. १० २७. दशवै. आचारमणिमंजूषा व्याख्या, भा. १, पृ. ११ २८. दशवै. ( गुजराती अनुवाद — संतबालजी) पृष्ठ ४ २९. (क) संयमः संयमनं = सम्यगुपरमणं सावद्ययोगादिति संयमः । (ख) संजमो नाम उपरमो, रागद्दोसविरहियएगीभावे भवइ त्ति । (ग) आश्रवद्वारोपरमः संयमः । (क) दसवेयालियं (सम्पादक —— मुनि नथमलजी), पृ. ८ (ख) संयम के प्रकारान्तर से १७ भेद— 'पंचास्रवाद्विरमणं पंचेन्द्रियनिग्रहः कषायजयः । दण्डत्रयविरतिश्चेति संयमः सप्तदशभेदः ॥' ३०. दशवैकालिक. (गुजराती अनुवाद-संतबालजी), पृष्ठ ४ ३१. दशवैकालिक (आचारमणिमंजूषा व्याख्या) भा. १, पृ. १२ से १६ तक - दशवै. आचा. म. मंजूषा, भा. १, पृ. ११ — हारि. वृत्ति, पत्र
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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