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________________ ___ रूप मोक्षमार्ग है। यही अनुस्रोतगामियों से पृथक् उसकी आन्तरिक विविक्तचर्या है, जिसका इस चूलिका में उल्लेख है। बाह्यविविक्तचर्या में भी आहार, विहार, निवास, व्यवहार, भिक्षा, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग, त्याग, तप, नियम आदि प्रवृत्तियों में सांसारिक जनों की प्रवृत्तियों से पृथक्, एकान्त-आत्महितकारी, विवेकयुक्त तथा शास्त्रोक्त मार्ग-सम्मत चर्या का निर्देश किया है। । प्रतिस्रोतगामी बनने के लिए बाह्य विविक्तचर्या के कुछ निषिद्ध आचरण भी बताए हैं, जैसे गृहस्थों की वैयावृत्य, वन्दना, पूजा, अभिवादन, संसर्ग, सहनिवास न करना आदि। दोनों प्रकार की विविक्तचर्याओं का मुख्य उद्देश्य समस्त दुःखों से मुक्त होना है, जो आत्मा की सतत रक्षा करने से ही संभव है। इससे पूर्व आत्मरक्षा के उत्तम उपाय बताए हैं। । कुल मिला कर प्रस्तुत चूलिका में विविक्तचर्या के सभी पहलुओं का सांगोपांग चिन्तन प्रस्तुत किया गया है। इस चूलिका को कोई श्रुतकेवलिभाषित, कोई केवलिभाषित और कोई विहरमान तीर्थंकर सीमंधरस्वामी से प्राप्त और एक साध्वी द्वारा श्रुत मानते हैं।
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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