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________________ O O O O बिइया चूलिया : विवित्तचरिया द्वितीय चूलिका : विविक्तचर्या [ बारसमं अज्झयणं : बारहवां अध्ययन ] प्राथमिक दशवैकालिकसूत्र की इस द्वितीय चूलिका (चूडा) को दशवैकालिकसूत्र का बारहवां अध्ययन भी कुछ आचार्यों ने माना है । विविक्त के कई अर्थ हैं— पृथक्, विवेकयुक्त, पवित्र (शुद्ध), स्त्री- पशु - नपुंसक से असंसक्त, विजन (जनसम्पर्क से शून्य), प्रच्छन्न (गुप्त), एकान्त आदि और चर्या का अर्थ हैं — आचरण, विचरण, व्यवहार, चारित्र, ज्ञानादि पंच- विध आचार। इस प्रकार 'विविक्तचर्या' शब्द अनेक अर्थों को अपने में समाए हुए है। प्रस्तुत चूलिका के अध्ययन से स्पष्ट प्रतीत होता है कि इसका मुख्य प्रतिपाद्य श्रमणनिर्ग्रन्थचर्या है। इसमें श्रमणनिर्ग्रन्थों की बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार की चर्या का निरूपण किया गया है। सर्वप्रथम चूलिका के प्रतिपादन की प्रतिज्ञा के बाद दो गाथाओं में विविक्तचर्या के आन्तरिक स्वरूप, उसके अधिकारी तथा यह अतिकठिन एवं दुष्कर होते हुए भी मुमुक्षु के लिए उपादेय है, इसका भलीभांति निरूपण है । विश्व का अधिकांश जनसमूह जिस विषयसुखभोग के प्रवाह में अविवेकपूर्वक बह रहा है, उस प्रवाह में अन्धानुकरणपूर्वक बहे जाना — अनुस्रोतगमन है। ऐसी गति (चर्या) में किसी प्रकार की जागृति, विवेक, विचार, बौद्धिक चिन्तन-मनन, हार्दिक अन्तर्निरीक्षण-परीक्षण, आत्मशक्ति के विकास या विज्ञान की खास आवश्यकता नहीं होती । अन्धा व्यक्ति या विवेकहीन व्यक्ति भी गतानुगतिक परम्परा के सहारे चल सकता है। ऐसे औधिक संज्ञा वाले जीवों की प्राय: सभी क्रियाएं परम्परानुसार — अधिकांश जनों की देखादेखी होती रहती हैं। किन्तु कुछ आत्मार्थी जागृत एवं साधनाशील व्यक्ति होते हैं, जिनके आन्तरिक चक्षु खुल जाते हैं, जिनके बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकासमार्ग में पड़े हुए आवरण दूर हो जाते हैं, ऐसे जागरूक साधक अपनी आत्मशक्ति का उपयोग अनुस्रोतगामी प्रवाह में बहने के बदले प्रतिस्रोतगामी बन कर सांसारिक प्रवाह से विपरीत त्याग, तप, संवर, निर्जरा एवं कर्ममुक्ति के मार्ग में करते हैं। अनुस्रोतगामी विषयभोगों की ओर गति करते हैं, जबकि प्रतिस्रोतगामी विषयभोगों से विरक्त होकर संयम, त्याग, तप, वैराग्य आदि गति करते हैं। अनुस्रोतगमन संसारमार्ग है, प्रतिस्रोतगमन जन्ममरणमुक्ति
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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