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________________ प्रथम चूलिका : रतिवाक्या ३७१ की उदीरणा करके कर्मफल भोगा जा सकता है। इससे कर्म की फलशक्ति मन्द हो जाती है और वह फल प्रदान के बिना भी नष्ट हो जाता है। अतः उत्कट तप द्वारा कर्म की स्थिति का परिपाक होने से पूर्व ही क्यों न मैं अपने पूर्वकृत कर्मों को क्षय कर दूं और अक्षय मोक्षसुख का भागी बनूं ? यह इस पंक्ति का रहस्य है। उत्प्रव्रजित के पश्चात्ताप के विविध विकल्प भवइ य एत्थ सिलोगो ५४३. जया य चयई धम्म अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले आयइं नावबुज्झई ॥२॥ ५४४. जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं ।। सव्वधम्मपरिब्भट्ठो स पच्छा परितप्पई ॥३॥ ५४५. जया य वंदिमो होई, पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुया ठाणा, स पच्छा परितप्पई ॥ ४॥ ५४६. जया य पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पई ॥५॥ ५४७. जया य माणिमो होई, पच्छा होई अमाणिमो । सेट्ठिव्व कब्बडे छूढो स पच्छा परितप्पई ॥६॥ ५४८. जया य थेरओ होइ समइक्कंतजोव्वणो ।+ मच्छो व्व गलं गिलित्ता स पच्छा परितप्पई ॥७॥ [जया य कुकुडुंबस्स कुतत्तीहिं विहम्मई । हत्थी व बंधणे बद्धो स पच्छा परितप्पई ॥] (क) साति कुडिलं । पुणो पुणो कुडिलहियया प्रायेण भुज्जो सातिबहुला मणुस्सा । -अ.चू. (ख) न कदाचित् विश्रंभहेतवोऽमी, तद्रहितानां च कीदक सुखम् ? इति किं गृहाश्रमेण इति सम्प्रत्युपेक्षितव्यमिति । -हारि. वृत्ति, पत्र २७२ (ग) आतंकः सद्योघाती विषूचिकादिरोगः । संकल्पः इष्टानिष्टवियोगप्राप्तिजो मानसं आतंकः । उपक्लेशा:-कृषिपाशुपाल्यवाणिज्याद्यनुष्ठानानुगताः पण्डितजनगर्हिताः शीतोष्णश्रमादयो घुतलवणचिन्तादयश्चेति । प्रव्रज्या पर्यायः । हारि. वृत्ति, पत्र २७३ (घ) आयंको सारीरं दुक्खं संकप्पो माणसं, तं च पियविप्पयोगमयं, संवाससोगभयविसादिकमणेगहा संभवति । -जिनदासचूर्णि, पृ. ३५६ (ङ) तरियातो समततो पुन्नागमणं, पव्वज्जा-सद्दस्सेव अवब्भंसो परियातो । (च) दशवैकालिक (आचार्यश्री आत्मारामजी महाराज), पृ.१००४ से १००८ तक पाठान्तर- + समइक्कंत जुव्वणो । अधिकपाठ-[] यह गाथा प्राचीन प्रतियों में उपलब्ध नहीं है । सं.
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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