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________________ • O O X पढमा चूलिया : रइवक्का प्रथम चूलिका : रतिवाक्या [ एक्कारसमं अज्झयणं : ग्यारहवां अध्ययन ] प्राथमिक दशवैकालिकसूत्र की प्रथम चूलिका का नाम 'रतिवाक्या' है । कुछ आचार्य इसे रतिवाक्य नामक ग्यारहवां अध्ययन भी कहते हैं । साधुजीवन गृहस्थजीवन की अपेक्षा त्याग, तप और संयम की दृष्टि से अनेकगुना उच्च और सात्त्विक है। महाव्रती साधकवर्ग की इतनी उच्च भूमिका होते हुए भी जब तक यह वीतरागता की स्थिति पर न पहुंच जाए, तब तक राग, द्वेष, मोह एवं विषय व कषाय की परिणतियां उसे बार-बार अपने व्रत, नियम, संयम एवं त्याग से विचलित कर देती हैं। कभी-कभी तो परीषहों और उपसर्गों का दौर आता है तो मोहनीयकर्मोदयवश उच्चकोटि का वह साधक जरा-से कष्ट, दुःख या ताप को सहन नहीं कर पाता। जिन विषयभोगों का उसने वर्षों पहले त्याग किया था, साधुधर्म के जिन नियमों, आचार-विचारों और महाव्रतों को वैराग्यपूर्वक सहर्ष अपनाया था, जो अपने उच्च चारित्र के कारण लाखों-करोड़ों व्यक्तियों का पूज्य, वन्दनीय, मार्गदर्शक और प्रेरक बन गया था, वही मोहदशा के कारण जरा-सा दुःख, कष्ट या परीषह का निमित्त मिलते ही संयम से विचलित हो जाता है। उसका शिथिल और चंचल मन पामर बन कर उसे दुष्ट वृत्तियों की ओर ले जाता है। संयम के प्रति उसकी अरुचि, अप्रीति और अरति हो जाती है। ऐसे समय में उस साधक के भटकते मन पर अंकुश लगाकर संयम के प्रति रुचि, प्रीति और रति उत्पन्न करने वाले कुशल मार्गदर्शक एवं प्रेरक की आवश्यकता होती है। इसी आवश्यकता की पूर्ति करने वाली यह 'रतिवाक्या' चूला है। इसके वाक्य श्रमणधर्म में रति उत्पन्न करने वाले हैं। इसलिए इस का नाम 'रतिवाक्या' रखा गया है।x साधक जब मोहदशावश विषयसुखरूप असंयम की ओर मुड़ने लगता है तब रतिवाक्या अध्ययन में वर्णित अठारह स्थान ( सूत्र ) घोड़े के लिए लगाम, हाथी के लिए अंकुश और नौका के लिए पताका (पाल) के समान उसके मन पर अंकुश लगाने और संयम में स्थिर करने वाले सिद्ध होते हैं। यद्यपि एक बार के प्रयत्न से या प्रेरणा से अनादिकालीन मोह-रोग नहीं मिट जाता। इसे मिटाने के लिए कुशल चिकित्सक का होना अनिवार्य है, जो बार-बार प्रेरणा देकर मोह-रोग को शान्त कर दे। अन्यथा, बीच-बीच में जरा-सा निमित्त या कुपथ्य का संयोग मिलते ही मोहरोग (संयम में अरति धर्मे चारित्ररूपे रतिकारकाणि—रतिजनकानि तानि च वाक्यानि येन कारणेन 'अस्यां चूडायां तेन निमित्तेन रतिवाक्यैषा चूडा ।' — हारि. वृत्ति, पत्र २७०
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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