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________________ दसवां अध्ययन : स-भिक्षु ३५३ ५२८. तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमं साइमं लभित्ता । ___ होही अट्ठो सुए परे वा, तं न निहे, न निहावए जे, स भिक्खू ॥ ८॥ ५२९. तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमं साइमं लभित्ता । छंदिय साहम्मियाण भुंजे, भोज्जा सज्झायरए य जे, स भिक्खू ॥ ९॥ ५३०. न य वुग्गहियं कहं कहेज्जा, __ न य कुप्पे, निहुइंदिए पसंते । संयम-धुव-जोगजुत्ते उवसंते, अविहेडए जे, स भिक्खू ॥ १०॥ [५२६] जो चार कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) का वमन (परित्याग) करता है, जो तीर्थंकरों (बुद्धों) के प्रवचनों में सदा ध्रुवयोगी रहता है, जो अधन (अकिंचन) है तथा सोने और चांदी से स्वयं मुक्त है, जो गृहस्थों का योग (अधिक संसर्ग या व्यापार) नहीं करता, वही सद्भिक्षु है ॥६॥ __ [५२७] जिसकी दृष्टि सम्यक् है, जो सदा अमूढ है, जो ज्ञान, तप और संयम में आस्थावान् है जो तपस्या से पुराने (पूर्वकृत) पाप कर्मों को प्रकम्पित (नष्ट) करता है और जो मन-वचन-काया से सुसंवृत है, वही सच्चा भिक्षु [५२८] पूर्वोक्त एषणाविधि से विविध अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को प्राप्त कर—'यह कल या परसों के लिए काम आएगा,' इस विचार से जो उस आहार को न तो (संचित) करता है और न कराता है, वह भिक्षु है ॥८॥ [५२९] पूर्वोक्त प्रकार से विविध अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार को पाकर जो अपन साधर्मिक साधुओं को निमन्त्रित करके खाता है तथा भोजन करके स्वाध्याय में रत रहता है, वही सच्चा भिक्षु है ॥९॥ [५३०] जो कलह उत्पन्न करने वाली कथा (वार्ता) नहीं करता और न कोप करता है, जिसकी इन्द्रियां निभृत (अनुत्तेजित) रहती हैं, जो प्रशान्त रहता है। जो संयम में ध्रुवयोगी है, जो उपशान्त रहता है और जो उचित कार्य का अनादर नहीं करता, वही भिक्षु है ॥ १०॥ . विवेचन सच्चे भिक्षु का जीवन प्रस्तुत ५ गाथाओं (५२६ से ५३० तक) में बताया गया है कि सच्चे भिक्षु का निर्ग्रन्थ धर्म की दृष्टि से जीवन कैसा होता है ? उसकी चर्या कैसी होती है ? वह स्वधर्म का आचरण किस प्रकार करता है ? ध्रुवयोगी : विभिन्न परिभाषाएँ (१) जो प्रतिक्षण, लव और मुहूर्त प्रबुद्धता—जागृति आदि गुणों से युक्त हो, (२) प्रतिलेखन आदि संयमचर्या में नियमित रूप से संलग्न हो तथा (३) मन, वचन, काया से की जाने वाली प्रवृत्तियों में सदा उपयोग- (सावधानी) पूर्वक जुटा रहता हो, (४) तीर्थंकर-प्रवचन (द्वादशांगी रूप) में निश्चल
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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