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________________ नवम अध्ययन : विनयसमाधि ३४७ फलश्रुति—उसे निम्नोक्त फल प्राप्त होते हैं— (१) वह विपुल हितकर, सुखकर और क्षेमकर मोक्षपद प्राप्त करता है, (२) जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है, (३) नरकादि अवस्थाओं से सर्वथा बच जाता है, (४) शाश्वतसिद्ध होता है, अथवा (५) अल्पकर्म वाला महर्द्धिक देव बनता है । " 'पयं' आदि शब्दों के अर्थ पयं— पद अर्थात् मोक्षपद । जाइ - मरणाओ— जन्म और मरण से, अथवा जन्म-मरणरूप संसार से । इत्थं इत्थं का अर्थ है— इस प्रकार प्राप्त हुआ, जो इस प्रकार स्थित हो, जिसके लिए 'यह ऐसा है,' इस तरह का व्यपदेश किया जाए उसे इत्थंस्थ कहा जाता है। नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव, ये ४ गतियां, शरीर, वर्ण, संस्थान इत्यादि सब जीवों के व्यपदेश के हेतु हैं। जो इत्थंस्थ को त्याग देता है अर्थात् अमुक प्रकार के विकारी रूप को त्याग देता है। अल्परए : दो रूप : दो अर्थ (१) अल्परजा — थोड़े कर्म वाला और (२) अल्परत अल्प- आसक्त ।" ॥ नवम अध्ययन : विनयसमाधि — चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥ ॥ नवम अध्ययन सम्पूर्ण ॥ १०. दशवै. ( आचार्य आत्म.), पृ. ९५२-५३ ११. (क) अगस्त्यचूर्णि (ख) हारि. वृत्ति, पृ. ३२९ (ग) जिनदासचूर्णि, पृ. १५८
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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