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वादित्रविरमण, ८. माल्य धारण, गन्धविलेपन-विरमण, ९. उच्चशय्या, महाशय्या-विरमण, १०. जातरूप-रजतग्रहण (स्वर्ण-रजतग्रहण)-विरमण । महाव्रत और शील में भावों की दृष्टि से बहुत कुछ समानता है। सुत्तनिपात के अनुसार भिक्षु के लिए मन-वचन-काय और कृत, कारित तथा अनुमोदित हिंसा का निषेध किया गया है। विनयपिटक'१३ के विधानानुसार भिक्षु के लिए वनस्पति तोड़ना, भूमि को खोदना निषिद्ध है क्योंकि उससे हिंसा होने की संभावना है। बौद्ध परम्परा ने पृथ्वी, पानी आदि में जीव की कल्पना तो की है पर भिक्षु आदि के लिए सचित्त जल आदि का निषेध नहीं है, केवल जल छानकर पीने का विधान है। जैन श्रमण की तरह बौद्ध भिक्षुक भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति भिक्षावृत्ति के द्वारा करता है। विनयपिटक में कहा गया है जो भिक्षु बिना दी हुई वस्तु को लेता है वह श्रमणधर्म से च्युत हो जाता है। संयुक्तनिकाय में लिखा है यदि भिक्षुक फूल को सूंघता है तो भी वह चोरी करता है। १५ बौद्ध भिक्षुक के लिए स्त्री का स्पर्श भी वर्ण्य माना है। १६ आनन्द ने तथागत बुद्ध से प्रश्न किया—भदन्त ! हम किस प्रकार स्त्रियों के साथ बर्ताव करें ? तथागत ने कहा—उन्हें मत देखो। आनन्द ने पुनः जिज्ञासा व्यक्त की यदि वे दिखाई दे जाएं तो हम उनके साथ कैसा व्यवहार करें? तथागत ने कहा उनके साथ वार्तालाप नहीं करना चाहिए। आनन्द ने कहा—भदन्त ! यदि वार्तालाप का प्रसंग उपस्थित हो जाय तो क्या करना चाहिए ? बुद्ध ने कहा—उस समय भिक्षु को अपनी स्मृति को संभाले रखना चाहिए।१७ भिक्षु का एकान्त स्थान में भिक्षुणी के साथ बैठना भी अपराध माना गया है।८ बौद्ध भिक्षु के लिए विधान है कि वह स्वयं असत्य न बोले, अन्य किसी से असत्य न बुलवावे और न किसी को असत्य बोलने की अनुमति दे।१९ बौद्ध भिक्षु सत्यवादी होता है, वह न किसी की चुगली करता है और न कपटपूर्ण वचन ही बोलता है।२० बौद्ध भिक्षु के लिए विधान है—जो वचन सत्य हो, हितकारी हो, उसे बोलना चाहिए।२१ जो भिक्षु जानकर असत्य वचन बोलता है,
अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करता है तो वह प्रायश्चित्त योग्य दोष माना है।२२ गृहस्थोचित भाषा बोलना भी बौद्ध भिक्षु के लिए वर्ण्य है।२३ बौद्ध भिक्षु के लिए परिग्रह रखना वर्जित माना गया है। भिक्षु को स्वर्ण, रजत आदि धातुओं को ग्रहण नहीं करना चाहिए।१२४ जीवनयापन के लिए जितने वस्त्र-पात्र अपेक्षित हैं, उनसे अधिक नहीं
१११. विनयपिटक महावग्ग १/५६ ११२. सुत्तनिपात ३७/२७ ११३. विनयपिटक, महावग्ग १/७८/२ ११४. विनयपिटक, पातिमोक्ख पराजिक धम्म, २ ११५. संयुक्त निकाय ९/१४ ११९. विनयपिटक, पातिमोक्ख संघादि सेस धम्म, २ ११७. दीघनिकाय २/३ ११८. विनयपिटक, पातिमोक्ख पाचितिय धम्म, ३० ११९. सुत्तनिपात, २६/२२ १२०. सुत्तनिपात, ५३/७, ९ १२१. मज्झिमनिकाय, अभयराजसुत्त १२२. विनयपिटक, पातिमोक्ख पाचितिय धम्म, १-२ १२३. संयुक्तनिकाय, ४२/१ १२४. विनयपिटक, महावग्ग १/५६, चुल्लवग्ग १२/१, पातिमोक्ख-निसग्ग पाचितिय १८
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