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________________ Aama 0 श्रुतशीलसम्पन्नता, बौद्धिक वैभव, मोक्ष एवं अनुत्तरसिद्धि आदि बताए हैं। द्वितीय उद्देशक में विनय को धर्मरूपी वृक्ष का मूल बता कर उसका परमफल मोक्ष बताया गया है। अविनीत को संसारस्रोतपतित, ज्ञान-दर्शनादि दिव्यलक्ष्मी से वंचित अविनीत अश्वादि की तरह दुःखानुभवकर्ता, विविध प्रकार से यातना पाने वाला, विपत्तिभाजन आदि और सुविनीत को ऋद्धियश पाकर सुखानुभवकर्ता, ग्रहण-आसेवन शिक्षा से पुष्पित-फलित एवं शिक्षाकाल में कठोर अनुशासन को भी प्रसन्नतापूर्वक स्वीकारकर्ता और गुरुवचनपालक बताया है। तत्पश्चात् गुरु के प्रति कायिक, वाचिक एवं मानसिक विनय की विधि का निर्देश किया है। ग्रहण-आसेवन शिक्षा को प्राप्त करने का अधिकारी सुविनीत ही होता है। अन्त में अविनीत, उद्धृत, चण्ड, गर्विष्ठ, पिशुन, साहसिक, आज्ञा को भंग करने वाला, अदृष्टधर्मा, विनय में अनिपुण एवं असंविभागी को मोक्ष की अप्राप्ति और आज्ञाकारी, गीतार्थ और विनयकोविद को सर्वदा कर्मक्षय करके संसारसागर को पार करके उत्तम गति की प्राप्ति बताई है। तृतीय उद्देशक में बताया गया है कि पूज्य वह होता है, जो अग्निहोत्री के समान गुरु की सेवा-शुश्रूषा में सतत जागरूक रह कर उनकी आराधना करता है, गुरु के उपदेशानुसार आचरण करता है, अल्पवयस्क किन्तु दीक्षा ज्येष्ठ साधु को पूजनीय मान कर विनयभक्ति करता है। जो नम्र है, सत्यवादी है, गुरुसेवा में रत है, अज्ञात-भिक्षाचर्या करता है, अलाभ में खिन्न और लाभ में स्वप्रशंसापरायण नहीं होता, जो अल्पेच्छ, यथा-लाभ-सन्तुष्ट, कण्टकसम कठोरवचम सहिष्णु, जितेन्द्रिय एवं अवर्णवाद-विमुख होता है, निषिद्ध भाषा का प्रयोग नहीं करता, जो रसलोलुप, चमत्कारप्रदर्शक, पिशुन, दीनभाव से याचक, आत्मश्लाघाकर्ता नहीं है, जो अकुतूहली है, गुणों से साधु है, सब जीवों को आत्मवत् मानता है, किसी को तिरस्कृत नहीं करता, गर्व एवं क्रोध से दूर है, योग्यमार्गदर्शक है, पंचमहाव्रतों में रत है, त्रिगुप्त, कषायविजयी तथा जिनागमनिपुण है।'' चतुर्थ उद्देशक में विनय, श्रुत, तप और आचार के द्वारा विनयसमाधि के चार स्थानों का विशद निरूपण किया गया है। अंत में चारों समाधियों के ज्ञाता और आचरणकर्ता को जन्म-मरण से सर्वथा मुक्ति अथवा दिव्यलोकप्राप्ति बताई है। 9 ८. दसवेयालियंसुत्त- (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), ९/१ ९. वही, ९/२ १०. वही, ९/३ ११. वही, ९/४
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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