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________________ २६८ दशवकालिकसूत्र बड़े प्रयत्न से काटा गया है। तथा किसी कन्या को दीक्षा के लिए उद्यत देख कर कहे—इसका पालन-पोषण बड़ी सावधानी से करने योग्य है। ये जो सांसारिक क्रियाएं हैं, वे सब कर्मबन्धन की ही कारण हैं। यदि किसी चोर पर अत्यन्त मार पड़ रही हो तब कहा जा सकता है दुष्कर्म का फल अतीव कटु होता है। देखो, दुष्कर्म के कारण बेचारे पर कितनी कठोर मार पड़ रही है।३३ ___ व्यापार से सम्बन्धित विषयों में बोलने के निषेध का कारण यह पदार्थ सर्वोत्कृष्ट है, शीघ्र खरीदने योग्य है, इत्यादि वचन बोलने से अप्रीति, अधिकरण और अन्तराय दोष लगता है। साधु के द्वारा कही बात को सुन कर यदि कोई गृहस्थ व्यापार सम्बन्धी नाना क्रियाओं में लग जाए तो उसमें बहुत-से अनर्थों के होने की सम्भावना है। यदि साधु द्वारा कथित वस्तु महंगी या सस्ती न हुई तो साधु के प्रति अप्रीति-अप्रतीति पैदा होगी। यदि उसी प्रकार हो गई तो अधिकरणादि दोष उत्पन्न होंगे। 'मैं सब की सब बातें कह दूंगा', इत्यादि निश्चयात्मक भाषा निषेध क्यों ? साधु यह स्वीकार करता है कि मैं तुम्हारी सब बातें कह दूंगा तो उसके सत्यमहाव्रत में दोष लगता है, क्योंकि जिस प्रकार उस व्यक्ति ने स्वरव्यञ्जन से युक्त भाषा व्यक्त की, उसी प्रकार नहीं कही जा सकती। इसी प्रकार दूसरा भी उस साधु की बात ज्यों की त्यों नहीं कह सकता। कारण वही पूर्वोक्त है। यदि साधु बिना सोचे-विचारे जो मन में आया, सो कहता चला जाएगा तो एक नहीं, अनेक आपत्तियां आती चली जाएंगी, जिनका हटाना कठिन होगा। असाधु और साधु कहने का विवेक ३७९. बहवे इमे असाहू लोए वुच्चंति साहुणो । न लवे असाहुं साहुं ति, साहुं साहुं ति आलवे ॥ ४८॥ ३८०. णाण-दंसणसंपन्नं, संजमे य तवे रयं । एवं गुणसमाउत्तं संजय साहुमालवे ॥ ४९॥ _ [३७९] ये बहुत से असाधु लोक में साधु कहलाते हैं, किन्तु (निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी) असाधु को–'यह साधु है', इस प्रकार न कहे, (अपितु) साधु को ही—'यह साधु है', इस प्रकार कहे ॥४८॥ [३८०] ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न तथा संयम और तप में रत—इस प्रकार के सद्गुणों से समायुक्त (सम्पन्न) संयमी को ही साधु कहे ॥ ४९॥ विवेचन किसको असाधु कहा जाए, किसको साधु ?—प्रस्तुत दो सूत्रगाथाओं (३७९-३८०) में जनता में साधु नाम से प्रख्यात किन्तु वस्तुतः असाधु को साधु कहने का निषेध तथा साधु के लक्षणों से सम्पन्न को साधु कहने का विधान किया गया है। लोकव्यवहार में साधु, गुणों से असाधु-जिसे वेषभूषा या अमुक क्रियाकाण्ड से जनसाधारण में साधु कहा जाता है, किन्तु जो गुणों से साधु नहीं है उसके विषय में साधु या साध्वी क्या कहे ? इसी का समाधान, इन दोनों ३३. दशवै. पत्राकार (आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज), पृ.७०२ ३४. दशवै. पत्राकार (आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज), पृ.७०४,७०७,७०८ ३५. वही, पत्राकार, पृ.७०६
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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