SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ दशवैकालिकसूत्र मूल्यांकन) अशक्य है, (यह वस्तु) अवर्णनीय—(अकथ्य) है, (अथवा इसकी विशेषता कही नहीं की जा सकती), यह वस्तु अप्रीतिकर है, (अथवा यह वस्तु अचिन्त्य है), (और यह वस्तु प्रीतिकर है), (इत्यादि व्यापारविषयक) वचन न कहे ॥४३॥ । [३७५] (साधु या साध्वी से कोई गृहस्थ किसी को संदेश कहने को कहे तब) 'मैं तुम्हारी सब बातें उससे अवश्य कह दूंगा' (अथवा किसी को सन्देश कहलाते हुए) (मेरी) 'यह सब (बात तुम) उससे कह देना' इस प्रकार न बोले, (किन्तु सब प्रकार के पूर्वोक्त वचन सम्बन्धी विधि-निषेधों का) पूर्वापर विचार करके बोले, (जिससे कर्मबन्ध न हो) ॥४४॥ [३७६] अच्छा किया (आपने यह माल) खरीद लिया अथवा बेच दिया यह अच्छा हुआ, यह पदार्थ खराब है, खरीदने योग्य नहीं है, अथवा (यह माल) अच्छा है, खरीदने-योग्य है, इस माल को ले लो (खरीद लो) अथवा यह (माल) बेच डालो (इस प्रकार) व्यवसाय-सम्बन्धी (वचन), साधु न कहे ॥ ४५ ॥ [३७७] (कदाचित् कोई गृहस्थ) अल्पमूल्य अथवा बहुमूल्य माल खरीदने या बेचने के विषय में (पूछे तो) व्यावसायिक प्रयोजन का प्रसंग उपस्थित होने पर साधु या साध्वी निरवद्य वचन बोले, (जिससे संयमधर्म में बाधा न पहुंचे या इस प्रकार से कहे कि क्रय-विक्रय से विरत साधु-साध्वियों का इस विषय में कोई अधिकार नहीं है।) ॥ ४६॥ ___ [३७८] इसी प्रकार धीर और प्रज्ञावान् साधु असंयमी (गृहस्थ) को यहां बैठ, इधर आ, यह कार्य कर, सो जा, खड़ा हो जा (या रह) या चला जा, इस प्रकार न कहे ॥४७॥ विवेचन सावद्य-प्रवृत्ति के अनुमोदन का निषेध तथा योग्य वचन-विधान–प्रस्तुत ८ सूत्रगाथाओं (३७१ से ३७८ तक) में से अधिकांश गाथाओं में गृहस्थ के द्वारा की जाने वाली सावद्य क्रियाओं की अनुमोदना एवं प्रेरणा का निषेध एवं साथ ही वक्तव्य-वचनों का विधान प्रतिपादित है। कालिक सावधभाषा निषेध–प्रस्तुत ३७१ वीं गाथा में परकृत सावध प्रवृत्तियों की मानसिक वाचिक अनुमोदना का निषेध किया गया है। उदाहरणार्थ—पूर्वकाल में अमुक संग्राम बहुत ही अच्छा हुआ, वर्तमान में ये संग्रामादि हो रहे हैं, ये अच्छे हो रहे हैं तथा भविष्य में यदि संग्राम छिड़ गया तो अच्छा होगा, इत्यादि सावध भाषण साधु या साध्वी न करे। ऐसी सावध भाषा के प्रयोग से पापकर्मों की अनुमोदना और प्रेरणा मिलती है। सूत्रोक्त उदाहरण केवल समझाने के लिए हैं। इसी प्रकार की अन्य सावद्य प्रवृत्तियों की भी प्रेरणा या अनुमोदना साधुवर्ग को नहीं करनी चाहिए। ___ 'सुकडे त्ति' सावधक्रियाओं की अनुमोदना भी निषिद्ध —अगस्त्यचूर्णि के अनुसार 'सुकृतं' शब्द समस्त क्रियाओं का प्रशंसात्मक वचन है, तथैव सुपक्व (पाकक्रिया), सुच्छिन्न (छेदनक्रिया), सुहृत (हरणक्रिया), सुमृत (मरणक्रिया), सुनिष्ठित (सम्पादनक्रिया) एवं सुलष्ट (शोभनक्रिया) के प्रशंसात्मक या अनुमोदक वचन हैं । वृत्तिकार एवं अन्य व्याख्याकार इनके उदाहरण भोजनविषयक भी देते हैं और सामान्य अन्य क्रियाविषयक भी। आचांराग में आए हुए इसी प्रकार के पाठ को देखते हुए यह गाथा भोजनविषयक लगती है। उत्तराध्ययनसूत्र की नेमिचन्द्राचार्य ३०. दशवै. पत्राकार (आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज), पृ.६९७
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy