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________________ २५८ दशवैकालिकसूत्र ३५४. परिवूढे त्ति णं बूया, बूया उवचिए त्ति य । संजाए पीणिए वा वि, महाकाए त्ति आलवे ॥ २३॥ ३५५. तहेव गाओ दुल्झाओ, दम्मा गोरहग ति य । वाहिया रहजोग्ग त्ति, नेवं भासेज पण्णवं ॥ २४॥ ३५६. जुवंगवे त्ति णं बूया, धेणुं रसदय त्ति य । ___ रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे त्ति य ॥ २५॥ [३५२] पंचेन्द्रिय प्राणियों को (दूर से देख कर) जब तक यह मादा (स्त्री) है अथवा नर (पुरुष) है' यह निश्चयपूर्वक न जान ले, तब तक (साधु या साध्वी) (यह मनुष्य की जाति है, यह गाय की जाति है या यह घोड़े की) जाति है, इस प्रकार बोले ॥२१॥ ___[३५३] इसी प्रकार (दयाप्रेमी साधु या साध्वी) मनुष्य, पशु-पक्षी अथवा सर्प (सरीसृप आदि) को देख कर यह स्थूल है, प्रमेदुर (विशेष मेद बढ़ा हुआ) है, वध्य (बाह्य) है, या पाक्य (पकाने योग्य) है, इस प्रकार न कहे ॥ २२॥ [३५४] (प्रयोजनवश बोलना ही पड़े तो) उसे परिवृद्ध (सब प्रकार से वृद्धिंगत) है, ऐसा भी कहा जा सकता है, उपचित (मांस से पुष्ट) है, ऐसा भी कहा जा सकता है, अथवा (यह) संजात (युवावस्था-प्राप्त) है, प्रीणित (तृप्त) है, या (यह) महाकाय (प्रौढ शरीर वाला) है, इस प्रकार (भलीभांति विचार कर) बोले ॥२३॥ ___ [३५५] इसी प्रकार प्रज्ञावान् मुनि–'ये गायें दुहने योग्य हैं तथा ये बछड़े (गोपुत्र) दमन करने (नाथने) योग्य हैं, (भार) वहन करने योग्य हैं, अथवा रथ (में जोतने) -योग्य हैं' इस प्रकार न बोले ॥ २४॥ [३५६] प्रयोजनवश बोलना ही पड़े तो (दम्य) बैल को यह युवा बैल है, (दोहनयोग्य) गाय को यह दूध देने वाली है तथा (लघुवृषभ को) छोटा बैल, (वृद्ध वृषभ को) बड़ा (बैल) अथवा (रथयोग्य वृषभ को) संवहन (धुरा को वहन करने वाला) है, इस प्रकार (विवेकपूर्वक) बोले ॥ २५॥ ___ विवेचन पंचेन्द्रिय जीवों के लिए निषेध्य एवं विधेय वचन–प्रस्तुत पांच सूत्र-गाथाओं (३५२ से ३५६ तक) में पंचेन्द्रिय प्राणियों के लिए न बोलने योग्य सावद्य एवं विवेकपूर्वक बोलने योग्य निरवद्य वचन का निरूपण किया गया है। अनिश्चय दशा में 'जाति' शब्द का प्रयोग दूरवर्ती मनुष्य या तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय प्राणी के विषय में जब तक सन्देह हो कि यह मादा (स्त्री) है या नर, तब तक साधु-साध्वी को उसके विषय में निश्चयात्मक नहीं कह कर 'यह अमुक जातीय है', ऐसा शब्द प्रयोग करना चाहिए। साधुवर्ग द्वारा प्रयुक्त सावध शब्दों को सुनकर उन प्राणियों को दुःख होता है, तथा सुनने वाले लोग उन्हें दुःख पहुंचा सकते हैं, इसलिए साधु वर्ग को परपीडाकारी या हिंसाजनक वचन नहीं बोलना चाहिए। १७. दशवै. पत्राकार (आचार्यश्री आत्मारामजी महाराज), पृ. ६६६ १८.' (क) दशवै. (मुनि संतबालजी), पृ. ९३ (ख) दशवै. पत्राकार (आचार्यश्री आत्मारामजी महाराज), पृ. ६६८-६७१
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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