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दशवकालिकसूत्र ३५१. नामधेजेण णं बूया पुरिसगोत्तेण वा पुणो । .
जहारिहमभिगिज्झ आलवेज लवेज वा ॥ २०॥ [३४५] इसी प्रकार प्रज्ञावान् साधु 'रे होल!, रे गोल!, ओ कुत्ते!, ऐ वृषल (शूद्र)! हे द्रमक!, ओ दुर्भग!' इस प्रकार न बोले ॥१४॥
_[३४६-३४७-३४८] स्त्री को—'हे आर्यिके (हे दादी! हे नानी!) हे प्रार्यिके (हे परदादी! हे परनानी!), हे अम्बे! (हे मां!), हे मौसी!, हे बुआ!, ऐ भानजी!, अरी पुत्री!, हे नातिन (पोती)!, हे हले, हे हला!, हे अन्ने!, हे भट्टे!, हे स्वामिनि!, हे गोमिनि!, हे होले!, हे गोले!, हे वृषले!' इस प्रकार आमंत्रित न करे। किन्तु (प्रयोजनवश) यथायोग्य गुण-दोष, वय, आदि का विचार कर एक बार या बार-बार उन्हें उनके नाम या गोत्र से आमन्त्रित करे ॥१५-१६-१७॥
[३४९-३५०-३५१] पुरुष को—'हे आर्यक! (हे दादा! या हे नाना!), हे प्रार्यक! (हे परदादा! हे परनाना!), हे पिता!, हे चाचा!, हे मामा!, हे भानजा!, हे पुत्र!, हे पोते!, हे हल!, हे अन्न!, हे स्वामिन् !, हे गोमिन्!, हे होल!, हे गोल!, हे वृषल!' इस प्रकार आमंत्रित न करे। किन्तु (प्रयोजनवश) यथायोग्य गुण-दोष वय आदि का विचार कर एक बार या बार-बार उन्हें उनके नाम या गोत्र से आमंत्रित करे ॥ १८-१९-२०॥
विवेचन अयोग्य सम्बोधनों का निषेध और योग्य सम्बोधनों का निर्देश प्रस्तुत ७ सूत्रगाथाओं में से ३४८, ३५१, इन दो गाथाओं को छोड़कर शेष ५ गाथाओं में तुच्छतादिसूचक सम्बोधनों का निषेध, तथा शेष दो गाथाओं में योग्य सम्बोधनों का विधान किया गया है।
अवज्ञासूचक सम्बोधन कई बार व्यवहार में सत्यभाषा होते हुए भी जिस-जिस देश में जो-जो शब्द नीचता, अवज्ञा, तुच्छता, निर्लज्जता या निष्ठुरता आदि के सूचक माने जाते हों उन शब्दों से बुद्धिमान् साधु किसी को सम्बोधित नहीं करे। यथा हे होल!, हे गोले!, अरे कुत्ते!, हे वृषल शूद्र !, हे रंक (कंगाल)! अरे अभागे! आदि। होलं आदि शब्द उन-उन देशों में प्रसिद्ध होने से निष्ठुरतावाचक या अवज्ञासूचक हैं। इनका अर्थ क्रमशः इस प्रकार है—होल—निष्ठुर आमंत्रण, गोल—जारपुत्र या दासीपुत्र-गोला । श्वान—कुत्ता, वृषल-शूद्र, द्रमक रंक (कंगाल), दुर्भग—अभागा।२
आर्यिके आदि सम्बोधनों का निषेध क्यों?—स्त्रियों के लिए आर्यिके आदि सम्बोधन गृहस्थ के लिए तो ठीक है, किन्तु साधु-साध्वियों का कौटुम्बिक नाता छूट गया है। अतः अब ये सम्बोधन मोह, आसक्ति या चाटुकारिता के द्योतक होने के कारण साधु-साध्वी के लिए त्याज्य हैं। जनता साधु-साध्वी के मुंह से ये शब्द सुनकर ऐसा अनुभव करती है कि यह श्रमणी या श्रमण अभी तक लोकसंज्ञा या चाटुकारिता को नहीं छोड़ पाया है।३
___ 'हले' आदि सम्बोधनों का प्रयोग कहां और निषिद्ध क्यों ? –'हले हले' शब्द सखी या तरुणी के लिए १२. (क) 'इह होलादिशब्दास्तत्तद्देशप्रसिद्धितो नैष्ठुर्यादिवाचकाः ।'
-हारि. वृत्ति, पत्र २१५ (ख) दशवै. (आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज) पत्राकार, पृ.६५६
(ग) अगस्त्यचूर्णि, पृ. १६८ १३. जिनदासचूर्णि, पृ. २५०