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________________ २५२ दशवकालिकसूत्र के लिए कहा गया है कि 'मुनि को तथाप्रकार की सत्यभाषा भी सावध, सक्रिय, कर्कश, कटुक, निष्ठुर, कठोर (परुष), आस्रवकारी, छेदनकारी, भेदनकारी, परितापनकारी और भूतोपघातिनी नहीं बोलनी चाहिए।' वितहं पि तहामुत्तिं० : व्याख्या (१) अगस्त्यचूर्णि के अनुसार—जो मनुष्य अन्यथाऽवस्थित, किन्तु किसी भाव से तथाभूतस्वरूप वाली वस्तु का आश्रय लेकर बोलता है। (२) जिनदासमहत्तर के अनुसार—जो पुरुष वितथमूर्तिवाली वस्तु का आश्रय लेकर बोलता है। (३) जो असत्य (वितथ) वस्तु, आकृति से सत्यवस्तु के समान प्रतिभासित होती है, साधु या साध्वी उसे सत्यवस्तु के समान न बोले। जैसे किसी पुरुष ने स्त्रीवेष धारण किया हुआ है, साधु उसे देखकर ऐसा न कहे कि स्त्री आ रही है। संदेहदशा में यह निषेध है। ___जब तक स्त्री या पुरुष का भलीभांति निर्णय न हो जाए, तब तक स्त्रीवेषी या पुरुषवेषी कहना चाहिए। किन्तु शंकित भाषा नहीं बोलनी चाहिए।' कालादिविषयक निश्चयकारी-भाषा-निषेध ३३७. तम्हा गच्छामो वक्खामो, अमुगं वा णं भविस्सई । अहं वा णं करिस्सामि, एसो वा णं करिस्सइ ॥६॥ ३३८. एवमाई उ जा भासा एसकालम्मि संकिया । संपयाईयमढे वा, तं पि धीरो विवजए ॥७॥ ३३९. अईयम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पन्नमणागए । जमटुं तु न जाणेज्जा, ‘एवमेयं' ति नो वए ॥ ८॥ ३४०. अईयम्मि य कालम्मि पच्चुप्पन्नमणागए । जत्थ संका भवे तं तु 'एवमेयं' ति नो वए ॥ ९॥ ३४१. अईयम्मि य कालम्मि पच्चुप्पन्नमणागए । निस्संकियं भवे जं तु 'एवमेयं' ति निद्दिसे ॥१०॥ [३३७-३३८] इसलिए हम जाऐंगे, हम कह देंगे, हमारा अमुक (कार्य) अवश्य हो जाएगा, या मैं अमुक कार्य करूँगा, अथवा यह (व्यक्ति) यह (कार्य) अवश्य करेगा, यह और इसी प्रकार की दूसरी भाषाएं, जो भविष्यत्काल-सम्बन्धी, वर्तमानकालसम्बन्धी अथवा अतीतकाल-सम्बन्धी अर्थ (बात) के सम्बन्ध में शंकित हों, धैर्यवान् साधु न बोले ॥६-७॥ ___ [३३९] अतीत काल, वर्तमान काल और अनागत (भविष्य) काल सम्बन्धी जिस अर्थ (बात) को (सम्यक् ६. (क) अतहा वितह-अण्णहावत्थितं, जहा पुरिसमित्थिनेवत्थं भणति—सोभते इत्थी एवमादि।....जतो एवं णेवच्छादीण य संद्धिहे वि दोसो, तम्हा। —अ. चू., पृ. १६५ (ख) वित्तहं नाम जंवत्थु न तेण सभावेण अत्थित्तं वितहं भण्णइ । अविसद्दो संभावणे । मुत्ती सरीरं भण्णइ,"तत्थ पुरिस इत्थिणेवत्थियं, इत्थिं वा पुरिसनेवत्थियं दळूण जो भासइइमा इत्थिया गायति णच्वइ, वाएइ गच्छइ, इमो वा पुरिसो गायइ णच्चइ वाएति गच्छइत्ति ।" -जिनदासचूर्णि, पृ. २४६ ७. दशवै. (मुनि नथमलजी), पृ. ३४९, दशवै. (आचार्य आत्मा.), पत्राकार, पृ. ६४३
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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