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________________ सत्तमं : वक्कसुद्धि-अज्झयणं सप्तम अध्ययन : वाक्यशुद्धि प्राथमिक यह दशवैकालिक सूत्र का सप्तम अध्ययन है 'वाक्यशुद्धि' । यह अध्ययन सत्यप्रवादपूर्व से उद्धृत । 'वाक्यशुद्धि' का अर्थ व्याकरण की दृष्टि से वाक्य की शुद्धता नहीं, किन्तु निर्ग्रन्थ श्रमण के आचार के अनुसार वाक्य अर्थात् वाणी, भाषा की शुद्धि है। साधु का पद बहुत ऊंचा है, उसके द्वारा सत्य-महाव्रत स्वीकार किया गया है, इसलिए उसे प्रत्येक शब्द तौल-तौल कर, पहले बुद्धि से भलीभांति सोच-विचार कर, हिताहित का विवेक करके उपयोगपूर्वक निरवद्य वचन बोलना चाहिए। नियुक्तिकार मौन और भाषण दोनों को कसौटी पर कसते हुए कहते हैं—वचन-विवेक में अकुशल तथा अनेकविध वचनगत प्रभेदों तथा प्रभावों को नहीं जानता हुआ, यदि कुछ भी नहीं बोलता (मौन रखता) है, तो वह यत्किंचित् भी वचनगुप्ति को प्राप्त नहीं होता। इसके विपरीत वचन-विवेक में कुशल तथा वचनगत प्रभेदों तथा अनेकविध प्रभावों को जानता हुआ व्यक्ति दिन भर बोल कर भी वचनगुप्ति (मौन) की आराधना से सम्पन्न हो जाता है। अतः पहले बुद्धि से सम्यक्तया विचार करके तत्पश्चात् वचन बोलना चाहिए। हे साधक! तेरी वाणी, बुद्धि का उसी तरह अनुगमन करे, जिस तरह अन्धा व्यक्ति अपने नेता (ले जाने वाले) का अनुगमन करता है। वाक्यशुद्धि के साथ संयम एवं अहिंसा की शुद्धि का घनिष्ठ सम्बन्ध है। जब तक साधक की वाणी हृदयगत भावों से शुद्धि और बुद्धिगत विवेक से नियंत्रित होकर नहीं निकलेगी, तब तक न तो उसका मनःसंयम ठीक होगा और न वचनसंयम और इन दोनों के अभाव में कायसंयम बहुत ही कठिन है। अहिंसा और सत्य दोनों के छन्ने से छन कर निकलने वाली वाणी ही भावशुद्धि का हेतु बनती है। -दशवै. नियुक्ति गाथा १७. १. सच्चप्पवायपुव्वा निजूढा होइ वक्कसुद्धीउ । २. (क) दशवै. (आ. आत्मा.), पत्राकार, प.६३३ (ख) दसवै. नियुक्ति गाथा २९२ वयणविभत्ति-अकुसलो, वयोगयं बहुविहं अयाणंतो । जइ वि न भासति किंची, न चेव वयगुत्तयं पत्तो ॥ १९२ ॥ वयणविभत्ती-कुसलो, वओगयं बहुविहं वियाणंतो । दिवसमवि भासमाणो अभासमाणो व वइगुत्तो ॥ १९३॥ पुव्वं बुद्धीइ पेहित्ता, पच्छा वयमुदाहरे । अचक्खुओ व नेतारं, बुद्धिमन्नेउ ते गिरा ॥ १९४॥ -नियुक्ति गाथा २९०-२९४
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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