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________________ २३६ दशवैकालिकसूत्र तेरहवां आचारस्थान : प्रथम उत्तरगुण अकल्प्य-वर्जन ३०९. जाइं चत्तारिऽभोजाई इसिणाऽऽहारमाइणि । ताइं तु विवजेतो संजमं अणुपालए ॥ ४६॥ ३१०. पिंड सेजं च वत्थं च, चउत्थं पायमेव य । अकप्पियं न इच्छेज्जा, पडिग्गाहेज कप्पियं ॥ ४७॥ ३११. जे नियागं ममायंति कीयमुद्देसियाऽऽहडं । वहं ते समणुजाणंति, इइ वुत्तं महेसिणा ॥ ४८॥ ३१२. तम्हा असण-पाणाई+ कीयमुद्देसियाऽऽहडं । वज्जयंति ठियप्पाणो निग्गंथा धम्मजीविणो ॥४९॥ [३०९] जो आहार आदि (निम्नोक्त) चार पदार्थ ऋषियों के लिए अकल्पनीय (अभोग्य) हैं, उनका विवर्जन करता हुआ (साधु) संयम का पालन करे ॥ ४६॥ ___[३१०] साधु या साध्वी अकल्पनीय पिण्ड (आहार), शय्या (वसति, उपाश्रय या धर्मस्थानक), वस्त्र (इन तीन) और चौथे पात्र को ग्रहण करने की इच्छा न करे, ये कल्पनीय हों तो ग्रहण करे ॥४७॥ [३११] जो साधु-साध्वी नित्य आदरपूर्वक निमंत्रित कर दिया जाने वाला (नियाग), क्रीत (साधु के निमित्त खरीदा हुआ), औद्देशिक (साधु के निमित्त बनाया हुआ) और आहृत (निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से सम्मुख लाया हुआ) आहार ग्रहण करते हैं, वे (प्राणियों के) वध का अनुमोदन करते हैं, ऐसा महर्षि महावीर ने कहा है ॥४८॥ [३१२] इसलिए धर्मजीवी, स्थितात्मा (स्थितप्रज्ञ), निर्ग्रन्थ, क्रीत, औदेशिक एवं आहत (आदि दोषों से युक्त) अशन-पान आदि का वर्जन करते हैं ॥४९॥ विवेचन साधुवर्ग की चार मुख्य आवश्यकताएँ : उनमें अकल्प्य का वर्जन, कल्प्य का ग्रहण—प्रस्तुत चार सूत्रगाथाओं (३०९ से ३१२ तक) में चार मुख्य आवश्यकताओं का निरूपण करके उनमें अकल्पनीय का वर्जन और कल्पनीय को ग्रहण करने का निर्देश किया गया है। साधुवर्ग की ४ मुख्य आवश्यकताएँ-(१) पिण्ड (आहार-पानी), (२) शय्या (आवासस्थान), (३) वस्त्र और (४) पात्र । आचारांगसूत्र, पिण्डनियुक्ति आदि में इन चारों के सम्बन्ध में कौन-सा, कैसा, कब और किस स्थिति में, किस दाता द्वारा ग्रहण करना कल्पनीय है ? कौन-सा पिण्ड आदि अकल्पनीय है ? इसका विस्तृत वर्णन अकल्प्य और कल्प्य की मीमांसा और अकल्प्यनिषेध का रहस्य जो पिण्ड, शय्या, वस्त्र और पात्र -हारि. वृत्ति, पत्र २०१ —हारि. वृत्ति, पत्र २०१ ३९. (छ) 'हव्यवाह'-अग्निः । एष आघातहेतुत्वादाघातः । (ज) 'सावज्जबहुलं-पापभूयिष्ठम् ।' (झ) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी), पृ. ३२१ ४०. पाठान्तर-उत्तं । + पाणाई ।
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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