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छठा अध्ययन: महाचारकथा
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अर्थ (१) आचार का विषय, (२) साधु के आचार के अंगभूत छह व्रत, (३) क्रियाकलाप, (४) ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य, यह पंचविध आचार और गोचर अर्थात् भिक्षाचरी। आचार्य द्वारा निर्ग्रन्थाचार की दुश्चरता और अठारह स्थानों का निरूपण
२६६. तेसिं सो निहुओ दंतो, सव्वभूयसुहावहो ।
सिक्खाए सुसमाउत्तो आइक्खइ वियक्खणो ॥३॥ २६७. हंदि ! धम्मऽत्थकामाणं निग्गंथाणं सुणेह मे ।
आयारगोयरं भीमं सयलं दुरहिट्ठियं ॥ ४॥ २६८. नऽन्नत्थ एरिसं वुत्तं, जं लोए परमदुच्चरं ।
विउलट्ठाणभाइस्स न भूयं, न भविस्सइ ॥५॥ २६९. सखुड्डग-वियत्ताणं वाहियाणं च जे गुणा ।।
अखंड-फुडिया कायव्वा तं सुणेह जहा तहा ॥६॥ २७०. दस अट्ठ य ठाणाइं, जाइं बालोऽवरज्झई ।
तत्थ अन्नयरे ठाणे, निग्गंथत्ताओ भस्सई ॥ ७॥ [वयछक्कं कायछक्कं, अकप्पो गिहिभायणं।
पलियंक-निसेज्जा य, सिणाणं सोहवजणं ॥]+ [२६६] (ऐसा पूछे जाने पर) वे निभृत (शान्त), दान्त, सर्वप्राणियों के लिए सुखावह, ग्रहण और आसेवन, शिक्षाओं से समायुक्त और परम विचक्षण गणी उन्हें (राजा आदि प्रश्नकर्ताओं से) (उत्तर में) कहते हैं-॥३॥
[२६७] हे राजा आदि जनो! धर्म के प्रयोजनभूत मोक्ष की कामना वाले निर्ग्रन्थों के भीम (कायर पुरुषों के लिए) दुरधिष्ठित (दुर्धर) और सकल (अखण्डित) आचार-गोचर (आचार का विषय) मुझसे सुनो ॥४॥
[२६८] जो (निर्ग्रन्थाचार) लोक (प्राणिजगत्) में अत्यन्त दुश्चर (अतीव कठिन) है, इस प्रकार के श्रेष्ठ आचार का कथन जैनशासन के अतिरिक्त कहीं नहीं किया गया है। विपुल (सर्वोच्च स्थान के भागी साधुओं का ऐसा आचार अन्य मत में) न तो अतीत में था, और न ही भविष्य में होगा ॥५॥ __[२६९] बालक हो या वृद्ध, अस्वस्थ हो या स्वस्थ, (सभी मुमुक्षु साधकों) को जिन गुणों (आचार-नियमों) का पालन अखण्ड और अस्फुटित रूप से करना चाहिए, वे गुण जिस प्रकार (भगवद्भाषित) हैं, उसी प्रकार (यथातथ्यरूप से) मुझ से सुनो ॥६॥
५. (क) आयारस्स आयारे वा गोयरो आयारगोयरो । गोयरोपुण-विसयो ।
-अ. चू., पृ. १३९ (ख) आचारगोचर:-क्रियाकलापः ।
-हारि. वृत्ति, पत्र १९१ (ग) आचारः साधुसमाचारस्तस्य गोचरो विषयो—व्रतषट्कादिराचारगोचरोऽथवा आचारश्च ज्ञानादिविषयः पंचधा, गोचरश्च-भिक्षाचर्येत्याचारगोचरम् ।
-स्था.८/३/६५१ वृ. पत्र ४१८ अधिक पाठ- + इस चिह्न से अंकित गाथा नियुक्ति में भी है, परन्तु वर्तमान में कई प्रतियों में मूल सूत्रगाथा के रूप में अंकित की गई है। वस्तुतः यह नियुक्तिगाथा है।
-सं.