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________________ २१४ दशवैकालिकसूत्र बनता है। ___अगुणाणं विवजए-अवगुणों का त्याग कर देता है, या (२) अवगुणरूपी ऋण नहीं करता। 'अवगुण' शब्द का आशय यहां है—प्रमाद, अविनय, क्रोध, असत्य, कपट, रसलोलुपता आदि। समाचारी के सम्यक् पालन की प्रेरणा : उपसंहार २६३. सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहिं संजयाण बुद्धाण सगासे । तत्थ भिक्खु सुप्पणिहिइंदिए तिव्वलजगुणवं विहरेज्जासि ॥५०॥ -त्ति बेमि ॥ ॥पिण्डेसणाए बीओ उद्देसओ समत्तो ॥ ॥पंचम पिंडसेणाऽज्झयणं समत्तं ॥५॥ [२६३] (इस प्रकार) संयमी एवं प्रबुद्ध गुरुओं (आचार्यों) के पास भिक्षासम्बन्धी एषणा की विशुद्धि सीख कर इन्द्रियों को सुप्रणिहित (समाधिस्थ) रखने वाला, तीव्रसंयमी (लज्जाशील) एवं गुणवान् होकर भिक्षु (संयम में) विचरण करे ॥५०॥ -ऐसा मैं कहता हूं। विवेचन एषणाविशुद्धि सीखे और उत्कृष्ट संयम में विचरे–प्रस्तुत उपसंहारगाथा में दो प्रेरणाएं मुख्यतया विहित हैं। तिव्वलज-गुणवं : भावार्थ तीव्र –उत्कृष्ट, लज्जा—संयम और गुण से युक्त होकर।" ॥ पिण्डषणा अध्ययन का द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ ॥पांचवां पिण्डैषणा नामक अध्ययन सम्पूर्ण ॥ ४२. दशवै. (आचार्य श्री आत्मारामजी म.), पृ. २९४ ४३. (क) वही, पृ. २९९ (ख) अगस्त्यचूर्णि, पृ. १३६ : 'अगुणो एव रिणं, तं विवजेति ।' ४४. 'लज्जा—संजमो। तिव्वसंजमो—उक्किट्ठो संजमो जस्स सो तिव्वसंजमो भण्णइ ।' –जिनदासचूर्णि, पृ. २०५
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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