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________________ आदि श्रमणों को उपदिष्ट किए गए पांच महाव्रतों तथा पृथ्वीकाय प्रभृति षड्जीवनिकाय का विश्लेषण है। संभव है इस अध्ययन से चतुर्थ अध्ययन की सामग्री का संकलन किया गया हो। पांचवें अध्ययन का विषय आचारांग के द्वितीय अध्ययन लोकविजय के पांचवें उद्देशक और आठवें, नौवें अध्ययन के दूसरे उद्देशक से मिलता-जुलता है। यह भी संभव है कि आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का प्रथम अध्ययन पिण्डैषणा है अतः पांचवां अध्ययन उसी से संकलित किया गया हो। छठा अध्ययन समवायाङ्ग के अठारहवें समवाय के 'वयछक्कं कायछक्कं अकप्पो गिहिभायणं । परियंक निसिज्जा य, सिणाणं सोभवज्जणं' गाथा का विस्तार से निरूपण है। सातवें अध्ययन का मूलस्त्रोत आचारांग १/१/६/५ में प्राप्त होता है। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के चतुर्थ अध्ययन का नाम भाषाजात है, उस अध्ययन में श्रमण द्वारा प्रयोग करने योग्य और न करने योग्य भाषा का विश्लेषण है। संभव है इस आधार से सातवें अध्ययन में विषय-वस्तु की अवतारणा हुई हो। आठवें अध्ययन का कुछ विषय स्थानांग ८/५९८,६०९, ६१५, आचारांग और सूत्रकृतांग से भी तुलनीय है। नौवें अध्ययन में विनयसमाधि का निरूपण है। इस अध्ययन की सामग्री उत्तराध्ययन के प्रथम अध्ययन की सामग्री से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। संभव है इस अध्ययन का मूल स्रोत उत्तराध्ययन का प्रथम अध्ययन रहा हो। दसवें अध्ययन में भिक्षु के जीवन और उसकी दैनन्दिनी चर्या का चित्रण है, तो उत्तराध्ययन का पन्द्रहवां अध्ययन भी इसी बात पर प्रकाश डालता है। अतः संभव है, यह अध्ययन उत्तराध्ययन के पन्द्रहवें अध्ययन का ही रूपान्तरण हो, क्योंकि भाव के साथ ही शब्दरचना और छन्दगठन में भी दोनों में प्रायः एकरूपता है। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की पहली चूला, १ व ४ अध्ययन से क्रमशः ५ वें और ७ वें अध्ययन की तुलना क है। दशवैकालिक के २.९ व १० वें अध्ययन के विषय की उत्तराध्ययन के १ और १५वें अध्ययन से तुलना कर सकते हैं। दिगम्बर परम्परा में दशवैकालिक का उल्लेख धवला, जयधवला, तत्त्वार्थराजवार्तिक, तत्त्वार्थश्रुतसागरीया वृत्ति प्रभृति अनेक स्थलों में हुआ है और 'आरातीयैराचार्यैर्नियूढं' केवल इतना संकेत प्राप्त होता है। सर्वार्थसिद्धि में लिखा है—जब कालदोष से आयु, मति और बल न्यून हुए, तब शिष्यों पर अत्यधिक अनुग्रह करके आरातीय आचार्यों ने दशवैकालिक प्रभृति आगमों की रचना की। एक घड़ा क्षीरसमुद्र के जल से ४४. (क) संतिमे तसा पाणा तं जहा—अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया समुच्छिमा उब्भिया ओववाइया । -आचारांग १/११८ तुलना करेंअंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा सम्मुच्छिमा उब्भिया उववाइया । –दशवैकालिक अध्ययन ४, सूत्र ९ (ख) ण मे देति ण कुप्पेज्जा —आचारांग २/१०२ तुलना करेंअदेंतस्स न कुप्पेजा -दशवैकालिक ५/२/२८ सामायिकमाहु तस्स तं जं गिहिमत्तेऽसणं ण भक्खति । -सूत्रकृतांग १/२/२/१८ तुलना करेंसन्निही गिहिमत्ते य रायपिंडे किमिच्छए । –दशवैकालिक ३/३ ४५. दशवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि की भूमिका, पृ. १२ [२५]
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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