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________________ पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा १८७ कांटा। सक्कर-कंकर। __परिष्ठापन विधि अगर साधु के भोजन में बीज, गुठली आदि निकलें तो उन्हें सचित्त अशस्त्रपरिणत समझ कर न खाए तथा कांटा, कंकर, काष्ठ का टुकड़ा, तिनका आदि निकले तो उसे खाने से पेट में पीड़ा हो सकती है, इसलिए उसे न खाए, किन्तु दूर से ऊपर उछाल कर न फेंके, न मुंह से उसे थूक कर गिराए, दोनों प्रकार से अयतना होती है। इसलिए शास्त्रकार ने पूर्ववत् (अत्यन्त खट्टा धोवन परिठाने की विधि के समान) इसके परिष्ठापन की विधि बताई है। इसके विधिपूर्वक परिष्ठापन के पश्चात् साधु या साध्वी अपने स्थान में आकर मार्ग में हुई भूलों की विशुद्धि के लिए ऐर्यापथिक प्रतिक्रमण करे।८ साधु-साध्वियों के आहार करने की सामान्य विधि २००. सिया य भिक्खु इच्छेजा, सेजमागम्म भोत्तुयं । सपिंडपायमागम्म उंडुयं पडिलेहिया ॥ ११८॥ २०१. विणएण पविसित्ता सगासे गुरुणो मुणी । इरियावहियमायाय आगओ य पडिक्कम्मे ॥ ११९॥ २०२. आभोएत्ताण निस्सेसं अइयारं जहक्कम्मं । गमणाऽऽगमणे चेव भत्तपाणे व संजए ॥ १२०॥ २०३. उज्जुप्पण्णो अणुव्विगो अव्वक्खित्तेण चेयसा । आलोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं भवे ॥ १२१॥ २०४. न सम्ममालोइयं होजा, पुव्विं पच्छा व जं कडं । पुणो पडिक्कम्मे तस्स वोसट्ठो चिंतए इमं ॥ १२२॥ २०५. 'अहो ! जिणेहिं असावजा वित्ती साहूण देसिया । मोक्ख-साहण-हेउस्स साहुदेहस्स धारणा ॥ १२३॥ २०६. नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिणसंथवं । . सज्झायं पट्टवेत्ताणं वीसमेज खणं मुणी ॥ १२४॥ २०७. वीसमंतो इमं चिंते हियमटुं लाभमट्टिओ । जइ मे अणुग्गहं कुजा, साहू होजामि तारिओ ॥ १२५॥ २०८. साहवो तो चियत्तेणं निमंतेज जहक्कम्मं । __जइ तत्थ केइ इच्छेज्जा, तेहिं सद्धिं तु भुंजए ॥ १२६॥ ८७. (क) हारि. वृत्ति, पत्र १७८ (ख) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी), पृ. २५० (ग) दशवै. आचारमणिमंजूषा, भाग १, पृ. ४८० ८८. (क) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी), पृ. २४८-२४९ (ख) दशवै. (गुजराती अनुवाद संतबालजी), पृ. ५८
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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