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________________ १७० दशवकालिकसूत्र एषणा का प्रथम दोष है। अपनी ओर से आत्मसाक्षी से पूरी गवेषणा (जांच-पड़ताल) कर लेने के बाद लिया हुआ वह आहार यदि अशुद्ध हो तो भी वह कर्मबन्ध का हेतु नहीं होता।६२ उद्भिन्न दोष-किसी वस्तु से ढंके हुए या लेप किये हुए बर्तन का मुंह खोल कर दिया हुआ आहार उद्भिन्न दोषयुक्त होता है। यह उद्गम का १२वां दोष है। उद्भिन्न दो प्रकार का है—पिहित-उद्भिन और कपाट-उद्भिन्न। चपड़ी आदि से बंद किये बर्तन का मुंह खोलना पिहित-उद्भिन्न है तथा बंद किवाड़ खोलना कपाट-उद्भिन्न है। पिधान (ढक्कन) सचित्त भी होता है, अचित्त भी। पत्ते, पानी से भरे घड़े आदि का ढक्कन सचित्त है। पत्थर की शिला या चक्की का ढक्कन अचित्त होते हुए भी भारी-भरकम होता है, उसे हटाने या खोलने में हिंसा, अयतना और दाता को कष्ट होने की संभावना है। कपाट चूलिये वाला हो तो उसे खोलने में जीववध की संभावना है। अतः दोनों प्रकार की भिक्षा लेने का निषेध है।६२ दानार्थ-प्रकृत आदि आहार-ग्रहण का निषेध १४४. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज सुणेज्जा वा दाणट्ठा पगडं इमं ॥ ६२॥ १४५. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६३॥ १४६. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज सुणेजा वा पुण्णट्ठा पगडं इमं ॥ ६४॥ १४७. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥६५॥ १४८. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज सुणेजा वा वणिमट्ठा पगडं इमं ॥६६॥ १४९. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥६७॥ १५०. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज सुणेजा वा समणट्ठा पगडं इमं ॥ ६८॥ १५१. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६९॥ ६२. (क) पिण्डनियुक्ति गाथा ५२९-५३० (ख) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी), पृ. २३४ (ग) दशवै. (आचार्य श्री आत्मारामजी म.), पृ. १८९ ६३. (क) पिण्डनियुक्ति गाथा ३४७ (ख) आचार-चूला १/९०-९१
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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