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________________ पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा १४९ व्रतों की पीड़ा : कैसे?— ऐसे कुसंसर्ग से ब्रह्मचर्य प्रधान सभी व्रतों की पीड़ा (विराधना) हो जाती है। कोई श्रमण साधुवेष को न छोड़े, फिर भी जब उसका मन कामभोगों में आसक्त हो जाता है तो ब्रह्मचर्यव्रत की विराधना हो ही जाती है। चित्त की चंचलता के कारण वह ईर्या या एषणा की शुद्धि नहीं कर पाता, इससे अहिंसाव्रत की क्षति हो जाती है। वह जब कामनियों की ओर ताक-ताक कर देखता है तो लोग पूछते हैं, तब वह असत्य बोल कर दोष छिपाता है, यह सत्यव्रत की विराधना है, स्त्रीसंग करना भगवदाज्ञा का भंग है, इस प्रकार वह अचौर्यव्रत का भी भंग करता है और सुन्दर स्त्रियों के प्रति ममत्व के कारण अपरिग्रहव्रतं की भी विराधना होती है। इस प्रकार एक ब्रह्मचर्यव्रत की विराधना से सभी व्रत पीड़ित हो जाते हैं।२० ___ एकान्त : दो अर्थ- (१) मोक्षमार्ग अथवा (२) विविक्तशय्यासेवी। भिक्षाचर्या के समय शरीरादिचेष्टा-विवेक ९४. साणं सूइयं गाविं दित्तं गोणं हयं गयं । संडिब्भं कलहं जुद्धं दूरओ परिवजए ॥ १२॥ ९५. अणुन्नए- नावणए अप्पहिडे. अणाउले । इंदियाइं जहाभागं, दमइत्ता मुणी चरे ॥ १३॥ ९६. दवदवस्स न गच्छेज्जा, भासमाणो य गोयरे । हसंतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया ॥ १४॥ ९७. आलोयं थिग्गलं दारं संधिं दगभवणाणि य । चरंतो न विणिज्झाए, संकट्ठाणं विवज्जए ॥ १५॥ ९८. रन्नो गिहवईणं च रहस्सारक्खियाण य । संकिलेसकरं ठाणं दूरओ परिवज्जए ॥ १६॥ __ [९४] (मार्ग में) कुत्ता (श्वान), नवप्रसूता (नयी ब्याई हुई) गाय, उन्मत्त (दर्पित) बैल, अश्व और गज (हाथी) तथा बालकों का क्रीड़ास्थान, कलह और युद्ध (का स्थान मिले तो उस) को दूर से ही छोड़ (टाल) कर (गमन करे) ॥ १२॥ (ग) २०. (क) व्रतानां प्राणातिपातविरत्यादीनां पीड़ा तदाक्षिप्तचेतसो भावविराधना । -हारि. वृत्ति, पत्र १६५ (ख) पीडा नाम विणासो। -जिन. चूर्णि, पृ. १७१ वताणं बंभव्वतपहाणाणं पीला किंचिदेव विराहणमुच्छेदो वा । समणभावे वा संदेहो अप्पणो परस्स वा। अप्पणो विसयविचालितचित्ते समणभावं छड्डेमि, मा वा ? इति संदेहो, परस्स एवंविहत्थाणविचारी किं पव्वतितो विडो वेसछण्णो ? त्ति संसओ । सति संदेहे चागविचित्तीकतस्स सव्वमहव्वतपीला।.... -अगस्त्यचूर्णि, पृ. १०२ २१. (क) एकान्तं मोक्षम् । -हारि. टीका, पत्र १६६ (ख) एगंतो णिरपवातो मोक्खगामी मग्गो-णाणादि। -अगस्त्य चूर्णि, पृ. १०२
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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