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________________ दशवैकालिकसूत्र [७०] जब (मनुष्य) पुण्य और पाप तथा बन्ध और मोक्ष को जान लेता है, तब जो भी दिव्य (देवसम्बन्धी) और मानवीय (मनुष्यसम्बन्धी) भोग हैं, उनसे विरक्त (निर्वेद को प्राप्त) हो जाता है ॥ ३९ ॥ [७१] जब साधक दैविक और मानुषिक भोगों से विरक्त हो जाता हैं, तब आभ्यन्तर और बाह्य संयोग का परित्याग कर देता है ॥ ४० ॥ १३० [७२] जब साधक आभ्यन्तर और बाह्य संयोगों का त्याग कर देता है, तब वह मुण्ड हो कर अनगारधर्म में प्रव्रजित हो जाता है ॥ ४१ ॥ [७३] जब साधक मुण्डित होकर अनगारवृत्ति में प्रव्रजित हो जाता है, तब उत्कृष्ट संवररूप अनुत्तरधर्म का स्पर्श करता है ॥ ४२ ॥ [७४] जब साधक उत्कृष्ट संवररूप अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है, तब अबोधिरूप पाप ( कलुष) द्वारा किये हुए (संचित) कर्मरज को (आत्मा से) झाड़ देता है (पृथक् कर देता है) ॥ ४३ ॥ [७५] जब साधक अबोधिरूप पाप द्वारा कृत (संचित) कर्मरज को झाड़ देता है, तब सर्वत्र व्यापी ज्ञान और दर्शन (केवलज्ञान और केवलदर्शन) को प्राप्त कर लेता है ॥ ४४ ॥ [ ७६ ] जब साधक सर्वत्रगामी ज्ञान और दर्शन को प्राप्त कर लेता है, तब वह जिन और केवली होकर लोक और अलोक को जान लेता है ॥ ४५ ॥ [७७] जब साधक जिन और केवली होकर लोक- अलोक को जान लेता है, तब योगों का निरोध करके शैलेशी अवस्था को प्राप्त कर लेता है ॥ ४६ ॥ [ ७८ ] जब साधक योगों का निरोध कर शैलेशी अवस्था को प्राप्त कर लेता है, तब वह (अपने समस्त ) कर्मों का (सर्वथा) क्षय करके रज- मुक्त बन, सिद्धि को प्राप्त कर लेता है ॥ ४७ ॥ [७९] जब (साधक समस्त) कर्मों का (सर्वथा) क्षय करके रज- मुक्त होकर सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, तब वह लोक के मस्तक पर स्थित होकर शाश्वत सिद्ध हो जाता है ॥ ४८ ॥ विवेचन - पुण्य-पापादि के ज्ञान से शाश्वत सिद्धत्व तक — प्रस्तुत १० गाथाओं (३९ से ४८ तक) में पुण्य-पाप, बंध और मोक्ष के ज्ञान से लेकर शाश्वत सिद्धत्व प्राप्ति तक का आत्मा के विकासक्रम का दिग्दर्शन हेतुहेतुमद्भाव के रूप में दिया गया है। आत्मा का विकासक्रम १. जीव और अजीव का विशेष ज्ञान । २. सर्वजीवों की बहुविध गतियों का ज्ञान । ३. पुण्य-पाप तथा बन्ध-मोक्ष का ज्ञान । ४. दैविक और मानुषिक भोगों से विरक्त । ५. बाह्य और आभ्यन्तर संयोगों का परित्याग । ६. मुण्डित होकर अनगारधर्म में प्रव्रज्या । ७. उत्कृष्ट संवररूप अनुत्तरधर्म का स्पर्श । ८. अबोधि-कृत कर्मों की निर्जरा ।
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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