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________________ १२४ दशवकालिकसूत्र जीवादि तत्त्वों के ज्ञान का महत्त्व ६४. पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही ?, किं व नाहीइ छेय-पावगं ॥ ३३॥ ६५. सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणई सोच्चा, जं छेयं* तं समायरे ॥ ३४॥ ६६. जो जीवे वि न याणति, अजीवे वि न याणति । जीवाऽजीवे अयाणंतो, कहं सो नाहीइ संजमं ॥ ३५॥ ६७. जो जीवे वि वियाणेइ, अजीवे वि वियाणति । जीवाऽजीवे वियाणंतो, सो हु नाहीइ संजमं ॥३६॥ ६८. जया जीवमजीवे य, दो वि एए वियाणई । तया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणई ॥ ३७॥ ६९. जया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणई । तया पुण्णं च पावं च, बंधं मोक्खं च जाणई ॥ ३८॥ [६४] 'पहले ज्ञान और फिर दया है' इस प्रकार (क्रम) से सभी संयमी (संयम में) स्थित होते हैं। अज्ञानी (बेचारा) क्या करेगा? वह श्रेय और पाप को क्या जानेगा! ॥ ३३॥ [६५] (क्योंकि व्यक्ति) श्रवण करके ही कल्याण को जानता है और श्रवण करके ही पाप को जानता है। कल्याण और पाप दोनों को सुनकर ही व्यक्ति जान पाता है, (तत्पश्चात् उनमें से) जो श्रेय है, उसका आचरण करता है ॥ ३४॥ [६६] जो जीवों को भी नहीं जानता (और) अजीवों को भी नहीं जानता, जीव और अजीव दोनों को नहीं जानने वाला वह (साधक) संयम को कैसे जानेगा? ॥ ३५ ॥ [६७] जो जीवों को भी विशेषरूप से जानता है और अजीवों को भी विशेषरूप से जानता है, (इस प्रकार) १०५. (ख) 'पिहियाणि पाणिवधादीणि आसवदाराणि जस्स सो पिहियासवदुवारो तस्स ।' –जिनदास चूर्णि, पृ:१६० (ग) 'दंतस्स-दंतो इंदिएहिं णोइंदिएहि य । इंदियदमो सोइंदियपयारनिरोहो वा सद्दातिरागद्दोसणिग्गहो वा, एवं सेसेसु वि । णोइंदियदमो कोहोदयणिरोहो वा उदयपत्तस्स विफलीकरणं वा, एवं जाव लोभो । तहा अकुसलमणणिरोहो वा कुसलमणउदीरणं वा, एवं वाया कातो य । तस्स इंदियणोइंदियदंतस्स पावं कम्म ण बज्झति, पुव्वबद्धं च तवसा खीयति ।' -अगस्त्य चूर्णि, पृ. ९३ (घ) जलमज्ये जहा नावा. सव्वओ निपरिस्सवा । गच्छंती चिट्ठमाणा वा, न जलं परिगिण्हइ ॥ एवं जीवाउले लोगे, साह संवरियासवो । गच्छंतो चिट्ठमाणो वा, पावं नो परिगेण्हइ ॥ -जिनदास चूर्णि, पृ. १५९ १०६. योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नति न लिप्यते ॥ -गीता ५/७ 0 पाठान्तर—'सेय-पावर्ग' * सेयं ।
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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