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________________ १२० दशवैकालिकसूत्र गमनविषयक यतना-अयतना- साधु-साध्वियों के लिए गमनागमनविषयक कुछ नियम ये हैं—वह षट्कायिक जीवों को देखता-भालता उपयोगपूर्वक चले, धीरे-धीरे युगप्रमाण (साढ़े तीन हाथ) भूमि को दिन में देख कर तथा रात्रि में रजोहरण से प्रमार्जन करता हुआ चले, बीज, घास, जल, पृथ्वी तथा चींटी, कीट आदि त्रस जीवों की यथाशक्य रक्षा करता हुआ, उन्हें बचाता हुआ चले। सरजस्क पैरों से राख, अंगारे, गोबर आदि पर न चले, जिस समय वर्षा हो रही हो, धुंअर पड़ रही हो, उस समय न चले, जोर से आंधी चल रही हो, मार्ग अन्धकाराच्छन्न हो गया हो, या कीट, पतंगे आदि सम्पातिम प्राणी उड़ रहे हों, उस समय न चले। वह हिलते हुए तख्ते, पत्थर या ईंट आदि पर पैर रख कर कीचड़ या जल को पार न करे, बिना प्रयोजन इधर-उधर न भटके, साधुचर्याविषयक प्रयोजन होने पर ही उपाश्रय से बाहर निकले, रात्रि में गमनागमन या विहार न करे, चलते समय ऊपर या नीचे देखता हुआ, बातें करता हुआ, हंसता या दौड़ता हुआ, दूसरे के कन्धे से कन्धा भिड़ाता हुआ, धक्कामुक्की करता हुआ न चले। यह गमनविषयक यतना है। इसके विपरीत गमनसम्बन्धी इन तथा ऐसे ही ईर्यासमिति के अन्य नियमों तथा शास्त्रीय आज्ञाओं का उल्लंघन करना गमनविषयक अयतना है।९६ ।। खड़े होने सम्बन्धी यतना-अयतना- शास्त्र में ईर्यासमिति के अन्तर्गत ही खड़े होने के कुछ नियम साधुवर्ग के लिए बताए हैं—सचित्त भूमि, हरियाली (हरी घास दूब आदि), वृक्ष, जल, अग्नि, उत्तिंग, पनक (काई) या किसी त्रस जीव पर पैर रख कर खड़ा न हो, पूर्ण संयम से खड़ा रहे, खड़ा-खड़ा इधर-उधर किसी के मकान या खिड़कियों तथा किसी स्त्री, अथवा खेल-तमाशे आदि की ओर दृष्टिपात न करे, खड़े-खड़े हाथ-पैर आदि को असमाधिभाव से न हिलाए-डुलाए, खड़े-खड़े आंखें मटकाना, अंगुलियों से या हाथ से किसी की ओर संकेत करना आदि चेष्टाएं न करे। खड़े होने सम्बन्धी इन या ऐसे ही अन्य शास्त्रीय नियमों का पालन करना तथा विवेकपूर्वक योग्य स्थान में खड़ा होना यतना है। इसके विपरीत खड़े होने सम्बन्धी इन या ऐसे ही अन्य नियमों का उल्लंघन करना अयतना है। बैठने सम्बन्धी यतना-अयतना- साधु के लिए बैठने के कुछ नियम हैं, जैसे कि सचित्त भूमि, बर्फ, आसन या किसी त्रस जीव पर या त्रस जीवाश्रित स्थान या काष्ठ आदि पर न बैठे, जगह का या तख्त आदि का प्रमार्जन-प्रतिलेखन किये बिना न बैठे, दरी, गद्दे, पलंग, खाट या स्प्रिंगदार कुर्सी आदि पर न बैठे, गृहस्थ के घर (अकारण) या दो घरों के बीच की गली में, रास्ते के बीच में न बैठे, अकेली स्त्री (साध्वी के लिए अकेले पुरुष) के पास न बैठे, व्यर्थ सावध बातें करने के लिए न बैठे, उपयोगपूर्वक बैठे, जहां बैठने से अप्रीति उत्पन्न होती हो, ऐसे स्थान में न बैठे। बैठे-बैठे हाथ-पैर आदि को अनुपयोगपूर्वक पसारना, सिकोड़ना, हिलाना आदि चेष्टाएं न करे, बैठने के इन या ऐसे ही अन्य शास्त्रीय नियमों का पालन करना यतना है और इनका उल्लंघन करना एतद्विषयक अयतना है। . शयन-विषयक यतना-अयतना— अप्रतिलेखित तथा अप्रमार्जित भूमि, तख्त, शय्या, शिलापट्ट, घास, चटाई आदि पर न सोये। सारी रात न सोये, न ही अकारण दिन में सोये, सोना-जागना नियमित समय पर करे, प्रकामनिद्रालु न हो, शयनकाल में करवट बदलते, हाथ-पैर सिकोड़ते-पसारते समय सावधानी रखे, पूंजणी से ९६. (क) 'अजयं नाम अणुवएसेणं, चरमाणो नाम गच्छमाणो ।' जिनदासचूर्णि, पृ. १५८ (ख) अयतं—अनुपदेशेनासूत्राज्ञया इति क्रिया विशेषणमेतत् ।....अयतमेव चरन् ईर्यासमितिमुल्लंघ्य ।
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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