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दशवकालिकसूत्र देना चाहिए। अयतना से पापकर्म का बन्ध और यतना से अबन्ध
५५. अजयं चरमाणो उ, पाण-भूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥ २४॥ ५६. अजयं चिट्ठमाणो उ, पाण-भूयाई हिंसई ।
बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥ २५॥ ५७. अजयं आसमाणो उ, पाण-भूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥ २६॥ ५८. अजयं सयमाणो उ, पाण-भूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥ २७॥ ५९. अजयं भुंजमाणो उ, पाण-भूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥ २८॥ ६०. अजयं भासमाणो उ, पाण-भूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥ २९॥ ६१. प्र.कहं चरे ? कहं चिट्ई ? कहमासे ? कहं सए ?
कहं भुंजतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ॥३०॥ ६२. उ.जयं चरे, जयं चिटे, जयमासे, जयं सए ।
जयं भुंजंतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई ॥ ३१॥+ ६३. सव्वभूयऽप्पभूयस्स सम्मं भूयाइं पासओ ।
पिहियासवस्स दंतस्स पावं कम्मं न बंधई ॥ ३२॥ _ [५५] अयतनापूर्वक गमन करने वाला साधु (या साध्वी) प्राणों (प्रस) और भूतों (स्थावर जीवों) की हिंसा करता है, (उससे) वह (ज्ञानावरणीय आदि) पापकर्म का बन्ध करता है। वह उसके लिए कटु फल वाला ९४. अगस्त्य चूर्णि, पृ. ९१, जिनदास चूर्णि, पृ. १५८, हारि. वृत्ति, पत्र १५६ + तुलना कीजिए- कधं चरे कधं चिट्ठे कधमासे कधं सये ।
कधं भुंजेज भासिज्ज, कधं पावं ण बज्झदि ? ॥१०१२॥ जदं चरे जदं चिट्ठे जदमासे जदं. सये । जदं भुंजेज भासेज, एवं पावं ण बज्झई ॥ १०१३॥ यतं तु चरमाणस्स, दयापेहुस्स भिक्खुणो । णवं ण बज्झदे कम्मं पोराणं च विधयदि ॥ १०१४ ॥
-मूलाचार (समयसाराधिकार—१०)