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________________ O O O O O ● O बिइयं अज्झयणं : द्वितीय अध्ययन सामण्णपुव्वगं : श्रामण्य - पूर्वक प्राथमिक दशवैकालिकसूत्र का यह द्वितीय श्रामण्यपूर्वक नामक अध्ययन है । श्रामण्य का अर्थ है— श्रमणत्व या श्रमणधर्म । श्रामण्य से पूर्व को ' श्रामण्यपूर्वक' कहते हैं। श्रामण्य से पूर्व क्या होता है ? ऐसी कौन-सी साधना है जिसके बिना श्रामण्य नहीं होता ? जैसे दूध के बिना ही नहीं हो सकता, तिल के बिना तेल नहीं हो सकता, बीज के बिना वृक्ष नहीं हो सकता, वैसे ही कामनिवारण के बिना श्रामण्य नहीं हो सकता। इसी तथ्य को दृष्टि में रख कर शास्त्रकार ने, जिसके बिना श्रामण्य नहीं हो सकता, इस अध्ययन में उसकी चर्चा होने से, इसका नाम ‘श्रामण्यपूर्वक' रखा है। टीकाकार के मतानुसार — ' श्रामण्य का मूल बीज धृति (धर्म) है । अत: इस अध्ययन में 'धृति' निरूपण है। कहा भी है जिसमें धृति होती है, उसके तप होता है, जिसके तप होता है, उसको सुलभ है। जो धृतिहीन हैं, निश्चय ही उनके लिए तप दुर्लभ है । २ शास्त्रकार मूल में काम-निवारण को श्रामण्य का बीज बताते हैं । वही समग्र अध्ययन का मूल स्वर है। तात्पर्य यह है कि श्रमणधर्म का पालन करने से पूर्व कामराग का निवारण आवश्यक है। आगे की गाथाओं में बताया गया है कि जो सांसारिक विषयभोगों या उत्तमोत्तम भोग्य पदार्थों का बाहर से त्याग कर देता है, या परवश होने के कारण उन पदार्थों का उपभोग नहीं कर पाता वह श्रमणत्वपालक या त्यागी नहीं। जो स्वेच्छा से, अन्तर से उन्हें त्याग देता है, वही त्यागी एवं श्रमणत्व का अधिकारी है। यहां 'काम' मुख्यतया मदन काम (मोहभाव) के अर्थ में लिया गया है। इसीलिए आगे कामरागनिवारण के ठोस उपाय बतलाये गये हैं । काम निवारण का उपाय करने पर भी मन नियंत्रण से दशवै. (मुनि नथमलजी), पृ. १७ जस्स धिई तस्स तवो, जस्स तवो तस्स सुग्गई सुलभा । जे अधिइमंत पुरिसा तवोऽपि खलु दुल्लहो तेसिं ॥ — हारि. वृत्ति
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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