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प्रकाशकीय
जिनागम ग्रन्थमाला के २३ वें ग्रन्थांक के रूप में श्री दशवैकालिकसूत्र का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था, पुनः इसी ग्रन्थांक से यह तृतीय संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं।
यद्यपि अन्यान्य प्रकाशन संस्थाओं से दशवैकालिकसूत्र के संस्करण प्रकाशित हुए हैं, वे अतीव संक्षिप्त या विस्तृत हैं। किन्तु समिति द्वारा प्रकाशित संस्करण मूल के हार्द को स्पष्ट करने के साथ सरलता से बोध कराने वाला होने से पाठकों के लिए विशेष रुचिकर सिद्ध हुआ और प्रचार-प्रसार भी अधिक हुआ है। - प्रस्तुत सूत्र चार मूलसूत्रों में परिगणित है। मूल वर्ग में समाविष्ट करने के लिए प्रस्तावना में विस्तृत चर्चा की है, अतएव यहां पुनरावृत्ति करना उपयोगी नहीं है। परन्तु इसके वर्ण्य विषय और उसकी । क्रमबद्धता को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न आगमों और चतुर्दशपूर्वो से आवश्यक अंशों का निर्वृहण करके गागर में सागर को समाहित कर दिया है, जिससे आध्यात्मिक साधकों के लिए दीपस्तम्भवत् मार्गदर्शक है। सामान्य नागरिक भी सूत्रगत आचार पद्धति को अपने लौकिक जीवन व्यवहार का बंशतः भी अंग बनायें तो सभ्य, सुसंस्कारित जीवनयापन कर सकता है।
सूत्र की अनुवादक-विवेचक साध्वी श्री पुष्पवतीजी सिद्धान्ताचार्य ने जिस लगन और परिश्रम से प्रत्येक विषय को स्पष्ट किया है, उसके लिए उनका हार्दिक अभिनन्दन करते हैं। उन्होंने अपनी प्रतिभा का सर्वतोभावेन उपयोग किया है।
समिति ने आगम बत्तीसी के प्रकाशन का जो लक्ष्य निर्धारित किया था, वह तो प्राप्त कर लिया है। अब आगम साहित्य का प्रचार-प्रसार करने के लिए अप्राप्य आगमों के तृतीय संस्करण प्रकाशित करने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। अनेक ग्रन्थों का पुनर्मुद्रण हो चुका है और शेष का मुद्रण हो रहा है। _अंत में हम अपने सभी सहयोगियों का सधन्यवाद आभार मानते हैं, जिनके सहकार से समिति को और हमें श्रुतसेवा करने का महान् अवसर प्राप्त हुआ है।
सागरमल बैताला
अध्यक्ष
रतनचन्द मोदी कार्याध्यक्ष
सायरमलचोरडिया
महामन्त्री
ज्ञानचंद विनायकिया
मन्त्री
श्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान)