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________________ दसवां उद्देशक] [४५१ पूर्ण हो जाने पर बड़ीदीक्षा दी जा सकती है। सामान्यतया तो इस वय के पूर्व दीक्षा भी नहीं देनी चाहिए। अतः यह सूत्रोक्त उपस्थापना का विधान आपवादिक परिस्थिति की अपेक्षा से है, ऐसा समझना चाहिए। अथवा उपस्थापना से दीक्षा या बड़ीदीक्षा दोनों ही सूचित हैं, ऐसा भी समझा जा सकता है। ___ अत्यधिक छोटी उम्र के बालक का अस्थिरचित्त एवं चंचल होना स्वाभाविक है एवं उसका जिद्द करना, रोना, खेलना, अविवेक से टट्टी पेशाब कर देना आदि स्थितियों से संयम की हानि होना संभव रहता है। इसी कारण से नौ वर्ष की उम्र के पूर्व दीक्षा या बड़ीदीक्षा देने का निषेध एवं प्रायश्चित्त विधान ___ सूत्र में संभुंजित्तए' क्रिया पद भी है, उसका तात्पर्य यह है कि उपस्थापना के पूर्व नवदीक्षित साधु को एक मांडलिक आहार नहीं कराया जा सकता है। क्योंकि तब तक वह सामायिकचारित्र वाला होता है। बड़ीदीक्षा के बाद वह छेदोपस्थापनीय चारित्र वाला हो जाता है। उसी के साथ एक मांडलिक आहार करने का विधान है, ऐसा समझना चाहिए। बालक को आचारप्रकल्प के अध्ययन कराने का निषेध ___ २०. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा अवंजणजायस्स आयारपकप्पे णामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। २१. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा वंजणजायस्स आयारपकप्पे णामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। २०. अव्यंजनजात अर्थात् अप्राप्त यौवन वाले बाल भिक्षु या भिक्षुणी को आचारप्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को नहीं कल्पता है। २१. व्यंजनजात अर्थात् यौवन प्राप्त भिक्षु भिक्षुणी को आचारप्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को कल्पता है। विवेचन-यहां आचारांगसूत्र और निशीथसूत्र को आचारप्रकल्प कहा गया है। इसका अध्ययन सोलह वर्ष से कम उम्र वाले साधु-साध्वी को कराने का निषेध किया गया है। इस विषयक संपूर्ण विवेचन उद्दे. १९ सूत्र २० में देखें। दीक्षापर्याय के साथ आगमों का अध्ययनक्रम २२. तिवास-परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ आयारपकप्पे नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। २३. चउवास-परियायस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पइ सूयगडे नाम अंगे उद्दिसित्तए। २४. पंचवास-परियायस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पड दसा-कप्प-ववहारे उद्दिसित्तए। २५. अदवास-परियायस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पड ठाण-समवाए उद्विसित्तए। २६. दसवास-परियायस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पइ वियाहे नामं अंगे उद्दिसित्तए।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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