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[व्यवहारसूत्र आहार निष्पन्न कर उससे जीवननिर्वाह करता है, यदि वह उस आहार में से निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है।
विवेचन-शय्यातर का आहार पाहुणों (मेहमानों) के एवं नौकरों को नियत किये अनुसार परिपूर्ण दे दिया गया हो तो उसमें से भिक्षु ग्रहण कर सकता है।
यदि पाहुणों को या नौकरों को थोड़ा-थोड़ा दिया जा रहा है एवं आवश्यकता होने पर वे पुनः ले सकते हैं और अवशेष रहने पर लौटा भी सकते हैं, ऐसा आहार साधु नहीं ले सकता है।
शय्यातर के सहयोग से ही जो ज्ञातिजन जीवन व्यतीत करते हों अर्थात् उनका सम्पूर्ण खर्च शय्यातर ही देता हो तो भिक्षु उसके आहार को ग्रहण नहीं कर सकता। यही अर्थ (९ से १६) आठ सूत्रों में कहा गया है। आशय यह है कि वे ज्ञातिजन शय्यातर के घर के अन्दर या बाहर किसी चूल्हे पर भोजन बनावें एवं उसका चौका अलग हो या शामिल हो, किसी भी विकल्प में उनका आहारादि नहीं कल्पता है।
___ इससे यह तात्पर्य समझना चाहिए कि शय्यातर के ज्ञातिजन या अन्य को मर्यादित खर्च दिया जाता हो और घट-बढ़ का जिम्मेवार वह शय्यातर नहीं हो तो उनका आहारादि ग्रहण किया जा सकता
शय्यातरपिंड संबंधी अन्य जानकारी निशीथ उ. २, बृहत्कल्प उ. २, दशा. द. २ एवं व्यव. उ. ६ में देखें। शय्यातर के भागीदारी वाली विक्रयशालाओं से आहार लेने का विधि-निषेध
१७. सागारियस्स चक्कियासाला साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए नो से कप्पड़ पडिग्गाहेत्तए।
१८. सागारियस्स चक्कियासाला निस्साहारण-वक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए एवं से नो कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।
१९. सागारियस्स गोलियसाला साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।
___२०. सागारियस्स गोलियसाला निस्साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।
२१. सागारियस्स बोधियसाला साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।
२२. सागारियस्स बोधियसाला निस्साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।