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________________ [ व्यवहारसूत्र १२. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं सागारियस्स अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए नो से कप्पड़ पडिग्गाहेत्तए । ४१८ ] १३. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए नो से कप्पड़ डिग्गात् । १४. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो सागारियस्स अभिनिपयाए, सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ डिग्गात्तए । १५. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवड़, तम्हा दावए नो से कप्पइ डिग्गाहेत्तए । १६. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं सागारियस्स अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए । १. शय्यातर के यहां किसी आगन्तुक के लिये आहार बनाया गया हो, उसे प्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना नहीं कल्पता है। २. शय्यातर के यहां किसी आगन्तुक के लिये आहार बनाया गया हो, उसे अप्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना नहीं कल्पता है। ३. शय्यातर के यहां किसी आगन्तुक के लिये आहार बनाया गया हो, उसे खाने के लिए प्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के बाह्यभाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना नहीं कल्पता है। ४. शय्यातर के यहां किसी आगन्तुक के लिये घर के बाह्यभाग में आहार बनाया गया हो, उसे खाने के लिये अप्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के बाह्यभाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना नहीं कल्पता है। ५. शय्यातर के दास, प्रेष्य, भृतक और नौकर के लिए आहर बना हो, उसे प्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस आहार में से वह साधु को दे तो लेना नहीं कल्पता है। ६. शय्यातर के दास, प्रेष्य, भृतक और नौकर के लिए आहार बना हो, उसे अप्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस आहार में से वह साधु को दे तो लेना कल्पता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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