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________________ सातवां उद्देशक ] १८-१९ २० २१-२२ २३ २४ २५-२६ उपसंहार सूत्र १-२ ३-४ ५-८ ९-१० ११-१२ १३-१७ १८-१९ २० २१-२४ २५-२६ [ ४०३ तीस वर्ष की दीक्षापर्याय तक की साध्वियों को उपाध्याय प्रवर्तिनी के बिना नहीं रहना चाहिए और ६० वर्ष तक दीक्षापर्याय वाली साध्वियों को बिना आचार्य के नहीं रहना चाहिए । विहार करते हुए मार्ग में साधु का मृतदेह पड़ा हुआ दिख जाय तो उसे योग्य विधि से एवं योग्य स्थान में परठ देना चाहिए। यदि उनके उपयोगी उपकरण हों तो उन्हें ग्रहण कर आचार्य की आज्ञा लेकर उपयोग में लिया जा सकता है। शय्यातर मकान को बेचे या किराये पर देवे तो नूतन स्वामी की या पूर्व स्वामी की या दोनों की आज्ञा ली जा सकती है। घर के किसी सदस्य की या जिम्मेदार नौकर की आज्ञा लेकर भी ठहरा जा सकता है । सदा पिता के घर रहने वाली विवाहित बेटी की भी आज्ञा ली जा सकती है। मार्ग में बैठना हो तो भी आज्ञा लेकर ही बैठना चाहिए। राजा या राज्यव्यवस्था परिवर्तित होने पर उस राज्य में विचरण करने के लिए पुनः आज्ञा लेना आवश्यक है । यदि उसी राजा के राजकुमार आदि वंशज राजा बनें तो पूर्वाज्ञा से विचरण किया जा सकता है। इस उद्देशक में अन्य गच्छ से आई साध्वी को गच्छ में लेने का, परस्पर संभोगविच्छेद करने का, परस्पर दीक्षा देने का, दूरस्थ आचार्यादि की निश्रा लेने का, दूरस्थ से क्षमापना करने या न करने का, स्वाध्याय करने या न करने का, साध्वी को आचार्य उपाध्याय स्वीकार करने का, साधु के मृतशरीर को परठने का, ठहरने के स्थानों की आज्ञा लेने का, राज्य में विचरण की नूतन आज्ञा लेने इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया है। ॥ सातवां उद्देशक समाप्त ॥ •
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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