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[व्यवहारसूत्र प्रस्तुत प्रकरण में व्यतिकृष्टकाल से केवल दिन और रात्रि की दूसरी तीसरी पौरिषी समझनी चाहिए अर्थात् इन चारों पौरिषी कालों में कालिकसूत्र का स्वाध्याय करने का निषेध है।
नंदीसूत्र में कालिकसूत्रों की संख्या १२+३० = ४२ कही है और उत्कालिक सूत्रों की संख्या २९ कही है।
- अनुयोगद्वारसूत्र में आवश्यकसूत्र को उत्कालिक कहा गया है। इस प्रकार कुल ४२+३० = ७२ आगम श्रुतज्ञान में कहे गए हैं।
इनमें से उपलब्ध कालिकसूत्रों का उत्काल में स्वाध्याय करना प्रथम सूत्र में निषिद्ध है, किन्तु दूसरे सूत्र में साध्वी के लिए निर्ग्रन्थों के पास स्वाध्याय करने का आपवादिक विधान किया गया है। उसका कारण यह है कि कभी-कभी प्रवर्तिनी या साध्वियों को मूलपाठ उपाध्याय आदि को सुनाना आवश्यक हो जाता है, जिससे कि अन्य साधु-साध्वियों में मूलपाठ की परम्परा समान रहे।
साधु-साध्वियों के परस्पर आगमों के स्वाध्याय का एवं वाचना का समय दूसरा-तीसरा प्रहर ही योग्य होता है, इसलिए यह छूट दी गई है, ऐसा समझना चाहिए।
उत्कालिक सूत्रों का चार संध्याकाल में स्वाध्याय करना भी निषिद्ध है, अत: दशवैकालिक या नंदीसूत्र का स्वाध्याय संध्याकाल में या दोपहर के समय नहीं किया जा सकता।
किसी परम्परा में नंदीसूत्र की पचास गाथा तथा दशवै. की दो चूलिका का स्वाध्याय, अस्वाध्यायकाल के समय भी किया जाता है।
इसी विषय में ऐसा माना जाता है कि ये रचनाएं मौलिक नहीं हैं। रचनाकार के अतिरिक्त किसी के द्वारा जोड़ी गई हैं।
किन्तु यह धारणा भ्रांत एवं अनुचित है, क्योंकि नंदीसूत्र के रचनाकार देववाचक श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हैं, यह निर्विवाद है। देववाचक उनका विशेषण है। नंदीसूत्र के चूर्णिकार एवं टीकाकार ने देववाचक या देवर्द्धिगणी को ही नंदीसूत्र का कर्ता स्वीकार किया है। नंदी की ५० गाथाओं में भी अन्त में दूष्यगणी को वंदन करके उनका गुणगान किया है। अत: दूष्यगणी के शिष्य देववाचक श्री देवर्द्धिगणी ही सूत्र के रचनाकार हैं। अन्तिम गाथा के अन्तिम चरण में यह कहा गया है कि 'णाणस्स परूवणं वोच्छं'-अब मैं ज्ञान की प्ररूपणा करूंगा। इससे भी यह स्पष्ट हो जाता है कि नंदी के कर्ता ही ५० गाथाओं के कर्ता हैं। अतः ५० गाथाओं को सूत्रकार के अतिरिक्त किसी के द्वारा सम्बद्ध मानना प्रमाणसंगत नहीं है तथा नंदीसूत्र का संध्या समय में या अस्वाध्याय समय में उच्चारण नहीं करके उसकी ५० गाथाओं का अकाल में स्वाध्याय करना या उच्चारण करना सर्वथा अनुचित है।
दशवैकालिकसूत्र की चूलिका के विषय में कल्पित कथानक या किंवदन्ती प्रचलित है कि'महाविदेह क्षेत्र के स्थूलिभद्र की बहिन द्वारा ये चूलिकायें लाई गई हैं।' किन्तु इस कथानक की प्रामाणिकता भी संदिग्ध है। क्योंकि किसी ग्रन्थ में दो चूलिकाएं लाने का वर्णन है तो किसी में चार चूलिका लाने का भी वर्णन है।
-परिशिष्टपर्व, पर्व ९, आव. चू. पृ. १८८