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________________ ३५६] [व्यवहारसूत्र सूत्र १-८ ९-१० ११-१२ चौथे उद्देशक का सारांश आचार्य एवं उपाध्याय को अकेले विचरण नहीं करना चाहिए और दो ठाणा से चौमासा भी नहीं करना चाहिए, किन्तु वे दो ठाणा से विचरण कर सकते हैं और तीन ठाणा से चातुर्मास कर सकते हैं। गणावच्छेदक को दो ठाणा से विचरण नहीं करना चाहिए और तीन ठाणा से चातुर्मास नहीं करना चाहिए। किन्तु वे तीन ठाणा से विचरण कर सकते हैं एवं चार ठाणा से चातुर्मास कर सकते हैं। अनेक आचार्य आदि को एक साथ विचरण करना हो तो भी उपर्युक्त साधुसंख्या अपनी-अपनी निश्रा में रखते हुए ही विचरण करना चाहिए और इसी विवेक के साथ उन्हें चातुर्मास में भी रहना चाहिए। विचरणकाल में या चातुर्मासकाल में यदि उस सिंघाड़े की प्रमुखता करने वाला भिक्षु काल-धर्म को प्राप्त हो जाय तो शेष साधुओं में जो श्रुत एवं पर्याय से योग्य हो, उसकी प्रमुखता स्वीकार कर लेनी चाहिए। यदि कोई भी योग्य न हो तो चातुर्मास या विचरण को स्थगित करके शीघ्र ही योग्य प्रमुख साधुओं के या आचार्य के सान्निध्य में पहुंच जाना चाहिए। आचार्य-उपाध्याय कालधर्म प्राप्त करते समय या संयम छोड़कर जाते समय जिसे आचार्य-उपाध्याय पद पर नियुक्त करने को कहें, उसे ही पद पर स्थापित करना चाहिए। वह योग्य न हो और अन्य योग्य हो तो उस आचार्यनिर्दिष्ट भिक्षु को पद न देकर या दे दिया हो तो उसे हटाकर अन्य योग्य भिक्षु को पद दिया जा सकता है। जो उसका खोटा पक्ष करें, वे सभी प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं। नवदीक्षित भिक्षु के शीघ्र ही योग्य हो जाने पर १२वीं रात्रि के पूर्व बड़ीदीक्षा दे देनी चाहिये। उसके उल्लंघन करने पर आचार्य-उपाध्याय को यथायोग्य तप या छेद प्रायश्चित्त आता है एवं सत्तरहवीं रात्रि का उल्लंघन करने पर तप या छेद प्रायश्चित्त के अतिरिक्त एक वर्ष के लिए पदमुक्त होने का प्रायश्चित्त भी आता है। यदि बड़ीदीक्षा के समय का उल्लंघन करने में नवदीक्षित के माता-पिता आदि पूज्य पुरुषों की दीक्षा का कारण हो तो उत्कृष्ट छ:मास तक दीक्षा रोकने पर भी प्रायश्चित्त नहीं आता है। अन्य गण में अध्ययन आदि के लिये गये भिक्षु को किसी के द्वारा पूछने पर प्रथम सर्वरत्नाधिक का नाम बताना चाहिये। उसके बाद आवश्यक होने पर सर्वबहुश्रुत का नाम निर्देश करना चाहिए। १३-१४ १५-१७
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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