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तीसरा उद्देशक ]
१३-१७
१८- २२
२३-२९
उपसंहार
१-२
३-८
९-१०
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१८- २२
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में नहीं रहना चाहिए और साध्वियों को आचार्य उपाध्याय एवं प्रवर्तिनी इन तीन से रहित गच्छ में नहीं रहना चाहिए। इनमें से किसी के कालधर्म प्राप्त हो जाने पर भी उस पद पर अन्य को नियुक्त करना आवश्यक है ।
आचार्यादि पद पर नियुक्त भिक्षु का चतुर्थ व्रत भंग हो जाए तो उसे आजीवन सभी पद के अयोग्य घोषित कर दिया जाता है ।
पद त्याग करके चतुर्थ व्रत भंग करने पर या सामान्य भिक्षु के द्वारा चतुर्थ व्रत भंग करने पर वह तीन वर्ष के बाद योग्य हो तो किसी भी पद पर नियुक्त किया जा सकता है। यदि पदवीधर किसी अन्य को पद पर नियुक्त किये बिना संयम छोड़कर चला जाय तो उसे पुनः दीक्षा अंगीकार करने पर कोई पद नहीं दिया जा सकता। यदि कोई अपना पद अन्य को सौंप कर जावे या सामान्य भिक्षु संयम त्याग कर जावे तो पुनः दीक्षा लेने के बाद योग्य हो तो उसे तीन वर्ष के बाद कोई भी पद यथायोग्य समय पर दिया जा सकता है ।
बहुश्रुत भिक्षु या आचार्य आदि प्रबल कारण से अनेक बार झूठ - कपट-प्रपंचअसत्याक्षेप आदि अपवित्र पापकारी कार्य करे या अनेक भिक्षु, आचार्य आदि मिलकर ऐसा कृत्य करें तो वह जीवन भर के लिए सभी प्रकार की पदवियों के अयोग्य हो जाते हैं और इसमें अन्य कोई विकल्प नहीं है ।
इस उद्देशक में—
प्रमुख बनकर विचरण करने के कल्प्याकल्प्य का,
पद देने के योग्यायोग्य का,
परिस्थितिवश अल्प योग्यता में पद देने का,
आचार्य, उपाध्याय दो के नेतृत्व में तरुण या नवदीक्षित साधुओं को रहने का, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तिनी इन तीन के नेतृत्व में तरुण या नवदीक्षित साध्वियों के रहने का,
चतुर्थव्रत भंग करने वालों को पद देने के विधि-निषेध का,
संयम त्याग कर पुन: दीक्षा लेने वालों को पद देने के विधि-निषेध का, झूठ-कपट - प्रपंच आदि करने वालों को पद देने के सर्वथा निषेध इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया है।
॥ तीसरा उद्देशक समाप्त ॥