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________________ ३२६] [व्यवहारसूत्र ___ तात्पर्य यह है कि बाल या तरुण वय वाले भिक्षु और नवदीक्षित भिक्षु एक हों या अनेक हों, उन्हें आचार्य और उपाध्याय की निश्रा में ही रहना आवश्यक है। जिस गच्छ में आचार्य उपाध्याय कालधर्म प्राप्त हो जाएं अथवा जिस गच्छ में आचार्य उपाध्याय न हों तो बाल-तरुण-नवदीक्षित भिक्षुओं को आचार्य उपाध्याय के बिना या आचार्य उपाध्याय रहित गच्छ में किंचित् भी रहना नहीं कल्पता है। उन्हें प्रथम अपना आचार्य नियुक्त करना चाहिए तत्पश्चात् उपाध्याय नियुक्त करना चाहिए। सूत्र में प्रश्न किया गया है-'हे भगवन्! आचार्य उपाध्याय बिना रहना ही नहीं, ऐसा कहने का क्या आशय है?' ___ इसका समाधान यह किया गया है कि ये उक्त वय वाले श्रमण निर्ग्रन्थ सदा दो से संग्रहीत होते हैं अर्थात् इनके लिये सदा दो का नेतृत्व होना अत्यन्त आवश्यक है-१. आचार्य २. उपाध्याय का। तात्पर्य यह है कि आचार्य के नेतृत्व से इनकी संयमसमाधि रहती है और उपाध्याय के नेतृत्व से इनका आगमानुसार व्यवस्थित अध्ययन होता है। ___ दूसरे सूत्र में नव, डहर एवंतरुण साध्वी के लिये भी यही विधान कियागया है। उन्हें भी आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी इन तीन की निश्रा के बिना रहना नहीं कल्पता है। इस सूत्र में भी प्रश्न करके उत्तर में यही कहा गया है कि ये उक्त वय वाली साध्वियां सदा तीन की निश्रा से ही सुरक्षित रहती हैं। सूत्र में 'निग्गंथस्स नव-डहर-तरुणगस्स' और 'निग्गंथीए णव-डहर-तरुणीए' इस प्रकार एकवचन का प्रयोग है, यहां बहुवचन का या गण का कथन नहीं है, जिससे यह विधान प्रत्येक 'नव डहर तरुण' भिक्षु के लिए समझना चाहिए। अतः जिस गच्छ में आचार्य और उपाध्याय दो पदवीधर नहीं हैं, वहां उक्त नव डहर तरुण साधुओं को रहना नहीं कल्पता है और इन दो के अतिरिक्त प्रवर्तिनी न हो तो वहां उक्त नव डहर तरुण साध्वियों को रहना नहीं कल्पता है। तात्पर्य यह है कि उक्त साधुओं से युक्त प्रत्येक गच्छ में आचार्य उपाध्याय दो पदवीधर होना आवश्यक है। यदि ऐसे गच्छ में केवल एक पदवीधर स्थापित करे या एक भी पदवीधर नियुक्त न करे केवल रत्नाधिक की निश्रा से रहे तो इस प्रकार से रहना आगम-विपरीत है। क्योंकि इन सूत्रों से यह स्पष्ट है कि अल्पसंख्यक गच्छ में या विशाल गच्छ में आचार्य और उपाध्याय का होना आवश्यक है, यही जिनाज्ञा है। यदि किसी गच्छ में २-४ साधु ही हों और उनमें कोई सूत्रोक्त नव डहर तरुण न हो अर्थात् सभी प्रौढ एवं स्थविर हों तो वे बिना आचार्य उपाध्याय के विचरण कर सकते हैं, किन्तु यदि उनमें नव डहर तरुण हों तो उन्हें किसी भी गच्छ के आचार्य उपाध्याय की निश्रा लेकर ही रहना चाहिए अन्यथा उनका विहार आगमविरुद्ध है। इसी प्रकार साध्वियाँ भी ५-१० हों, जिनके कोई आचार्य उपाध्याय या प्रवर्तिनी न हो या उन्होंने किसी परिस्थिति से गच्छ का त्याग कर दिया हो और उनमें नव डहर तरुण साध्वियाँ हों तो उन्हें भी किसी आचार्य और उपाध्याय की निश्रा स्वीकार करना आवश्यक है एवं अपनी प्रवर्तिनी नियुक्त करना भी आवश्यक है। अन्यथा उनका विहार भी आगमविरुद्ध है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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