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तीसरा उद्देशक]
[३२३ ७. अणुमयाणि-बहुमयाणि-गच्छगत बाल ग्लान वृद्ध आदि सभी को मान्य, बहुमान्य आदेय वचन वाले।
८. तेहिं कडेहिं जाव तेहिं बहुमएहिं-ऐसे भावित यावत् सब को मान्य परिवार वाले सदस्यों में से कोई दीक्षा लेने वाला भिक्षु हो तो उसे
कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तदिवसं-उसी दिन दीक्षा देकर आचार्य उपाध्याय पद दिया जा सकता है।
भाष्य में इस सूत्र की व्याख्या करते हुए मोहवश या स्वार्थवश पारिवारिक लोगों द्वारा बलात् दीक्षा छुड़वा कर घर ले जाये गये व्यक्ति के कालांतर से पुनः दीक्षित होने पर उसे उसी दिन पद देने का संबंध बताया है, किंतु यह कल्पना सूत्र के आशय के अनुकूल नहीं है। क्योंकि सूत्र में उसके पूर्व दीक्षापर्याय संबंधी गुणों या उपलब्धियों का कोई कथन नहीं किया गया है, अपितु पारिवारिक लोगों की पूर्ण धर्मनिष्ठा का वर्णन किया है। शास्त्रकार द्वारा ऐसे सद्गुणों से सम्पन्न पारिवारिक जनों के द्वारा बलात् मोह से स्वार्थवश अपहरण की कल्पना करना उपयुक्त नहीं है। अतः ऐसे श्रेष्ठ गुणसंपन्न भावित कुल से दीक्षित होने वाला नवदीक्षित भिक्षु ही 'निरुद्धपर्याय' शब्द से अभीष्ट है।
___भाष्य में दसवें सूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि संयम में किसी प्रकार के दोषों को सेवन करने पर जिसकी दीक्षापर्याय का छेदन कर दिया गया हो, जिससे उसकी दीक्षापर्याय पदप्राप्ति के योग्य नहीं रही हो ऐसे भिक्षु को पद देने का वर्णन है। किंतु सूत्र के विषय की इस प्रकार संगति करना भी उपयुक्त नहीं लगता है। क्योंकि ऐसे दीक्षाछेदन योग्य दोषों से खंडित आचार वाले को पद देना ही उचित नहीं है।
सूत्र में उसके आचारप्रकल्प अध्ययन की अपूर्णता भी कही है। इससे भी अल्पवर्ष की प्रारम्भिक दीक्षापर्याय वाले का ही कथन सिद्ध होता है। क्योंकि अधिक दीक्षापर्याय तक भी जिसका आचारप्रकल्प-अध्ययन पूर्ण न हो ऐसे जडबुद्धि और दीक्षाछेद के प्रायश्चित्त को प्राप्त भिक्षु को पद देना शोभाजनक एवं प्रगतिकारक नहीं हो सकता और वास्तव में ऐसा व्यक्ति तो पूर्व सूत्रों के अनुसार सभी पदों के सर्वथा अयोग्य होता है। उसके लिए तो सूत्र में अपवादविधान भी नहीं है।
अतः इन सूत्रों में प्रयुक्त 'निरुद्ध' शब्द से 'पूर्व दीक्षा का निरोध' या 'छेदन' अर्थ न करके 'अल्प वर्ष की दीक्षापर्याय' एवं 'अत्यंत अल्प संयमपर्याय' अर्थात् दीक्षा के प्रथम दिन पद देने का अर्थ करना चाहिए।
आगमों में 'निरुद्ध' शब्द 'अल्प' या 'अत्यल्प' अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। यथा१. सन्निरुद्धम्मि आउए-अत्यंत अल्प आयु वाले इस मनुष्य भव में, २. निरुद्धायु-अल्प आयु, ३. निरुद्धभवपवंचे-संसारभ्रमण जिसका अल्प रह गया है, ४. निरुद्धवास-आवश्यक वर्षों से अल्प वर्ष पर्याय वाला।