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________________ [ व्यवहारसूत्र नंदीसूत्र की रचना के समय उसका विभक्त होना एवं निशीथ नामकरण हो जाना संभव है। उसके पूर्व अनेक आगम स्थानों में निशीथ नाम का कोई अस्तित्व नहीं है, केवल 'आचारप्रकल्प' या 4 'आचारप्रकल्प-अध्ययन' के नाम से विधान किये हैं । निशीथसूत्र के अलग हो जाने के कारण उसके रचनाकार के संबंध में अनेक विचार प्रचलित हुए हैं, यथा १. यह विशाखागणि द्वारा पूर्वों से उद्धृत किया गया है। २. समय की आवश्यकता को लेकर आर्यरक्षित ने इसकी रचना की है। ३१८] ३. चौदहपूर्वी भद्रबाहुस्वामी ने निशीथ सहित चारों छेदसूत्रों को पूर्वों से उद्धृत किया है, इत्यादि कल्पनाएं की गई हैं। व्यवहारसूत्र में 'आचारप्रकल्प - अध्ययन' का वर्णन है और उसे साधु-साध्वी दोनों को कंठस्थ रखने का कथन है और व्यवहारसूत्र चौदहपूर्वी भद्रबाहुस्वामी के द्वारा रचित (निर्यूढ) है। अत: भद्रबाहुस्वामी के बाद में होने वाले विशाखागणि और आर्यरक्षित के द्वारा आचारप्रकल्प की रचना करने की कल्पना करना तो स्पष्ट ही आगम से विपरीत है । उन दोनों आचार्यों में से किसी एक के द्वारा पूर्वश्रुत से उद्धृत करना मान लेने पर निशीथसूत्र पूर्वश्रुत का अंश मानना होगा। जबकि व्यवहारसूत्र में साध्वियों को उसके कंठस्थ रखने का विधान है और साध्वियों को पूर्वों का अध्ययन वर्जित भी है। अतः इन दोनों आचार्यों के द्वारा पूर्वी से उद्धृत करने का विकल्प भी सत्य नहीं है, किन्तु उन आचार्यों के पहले भी यह आचारप्रकल्प पूर्वों से भिन्न श्रुत रूप में उपलब्ध था, यह निश्चित है । भद्रबाहुस्वामी ने चार छेदसूत्रों की रचना नहीं की थी किन्तु तीन छेदसूत्रों की ही रचना की थी, यह दशा श्रुतस्कंधसूत्र की नियुक्ति की प्रथम गाथा से स्पष्ट है गाथा - वंदामि भद्दबाहुं, पाईणं चरिम - सगल - सुय - णाणिं । सुत्तस्स कारगमिसिं, दसासु कप्पे य ववहारे ॥ दशाश्रुतस्कंध के नियुक्तिकर्ता द्वितीय भद्रबाहुस्वामी ने प्रथम भद्रबाहुस्वामी को प्राचीन भद्रबाहु के नाम से वंदन करके उन्हें तीन सूत्रों की रचना करने वाला कहा है । भद्रबाहुस्वामी ने यदि निशीथसूत्र की रचना की होती तो वे व्यवहारसूत्र में सोलह बार 'आचारप्रकल्प' का प्रयोग करने के स्थान में या अध्ययनक्रम कहने 'वर्णन में कहीं निशीथ का भी नाम निर्देश कर देते। किन्तु अध्ययनक्रम में भी निशीथ का नाम नहीं दिया गया है, आचारप्रकल्प और 'दसा-कप्प-ववहार' नाम दिये हैं। अतः निशीथसूत्र को भद्रबाहु की रचना कहना भी प्रमाण-संग नहीं है। " इन सब विचारणाओं से यह सिद्ध होता है कि यह किसी की रचना नहीं है किन्तु आचारांग के अध्ययन को किसी आशय से पृथक् किया गया है। कब किसने पृथक् किया, कब तक आचारप्रकल्प नाम रहा और कब निशीथ नाम हुआ, यह जानने का आधार नहीं मिलता है । तथापि नंदीसूत्र की रचना
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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