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________________ २३८] [बृहत्कल्पसूत्र भक्त-पानादि के पात्र नहीं रखने पर साध्वी के आहार-नीहार का करना सम्भव नहीं है। वस्त्र त्यागकर कायोत्सर्ग करना भी साध्वी के लिए निषिद्ध है, क्योंकि उस दशा में कामप्रेरित तरुण जनों के द्वारा उपसर्गादि की सम्भावना रहती है। साध्वी को प्रतिज्ञाबद्ध होकर आसनादि करने का निषेध २०. नो कप्पइ निग्गंथीए वोसट्ठकाइयाए होत्तए। २१. नो कप्पइ निग्गंथीए बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा उड्ढे बाहाओ पगिल्झिय-पगिल्झिय सूराभिमुहीए एगपाइयाए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए। कप्पइ से उवस्सयस्स अंतोवगडाए संघाडियपडिबद्धाए पलंबियबाहुयाए समतलपाइयाए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए। २२. नो कप्पइ निग्गंथीए ठाणाइयाए होत्तए। २३. नो कप्पइ निग्गंथीए पडिमट्ठाइयाए होत्तए। २४. नो कप्पइ निग्गंथीए उक्कुडुयासणियाए होत्तए। २५. नो कप्पइ निग्गंथीए निसज्जियाए होत्तए। २६. नो कप्पइ निग्गंथीए वीरासणियाए होत्तए। २७. नो कप्पइ निग्गंथीए दण्डासणियाए होत्तए। २८. नो कप्पइ निग्गंथीए लगण्डसाइयाए होत्तए। २९. नो कप्पइ निग्गंथीए ओमंथियाए होत्तए। ३०. नो कप्पइ निग्गंथीए उत्ताणियाए होत्तए। ३१. नो कप्पइ निग्गंथीए अम्बखुजियाएं होत्तए। ३२. नो कप्पइ निग्गंथीए एगपासियाए होत्तए। २०. निर्ग्रन्थी का सर्वथा शरीर वोसिराकर रहना नहीं कल्पता है। २१. निर्ग्रन्थी को ग्राम यावत् राजधानी के बाहर भुजाओं को ऊपर की ओर करके, सूर्य की ओर मुंह करके तथा एक पैर से खड़े होकर आतापना लेना नहीं कल्पता है। किन्तु उपाश्रय के अन्दर पर्दा लगाकर के भुजाएं नीचे लटकाकर दोनों पैरों को समतल करके खड़े होकर आतापना लेना कल्पता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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