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[बृहत्कल्पसूत्र काल-गत भिक्षु के शरीर को परठने की विधि
२९. भिक्खू याराओवा वियाले वा आहच्च वीसुंभेज्जा, तंच सरीरगं केइ वेयावच्चकरे भिक्खू इच्छेज्जा एगंते बहुफासुए पएसे परिट्ठवेत्तए।
___ अत्थि य इत्थ केइ सागारियसंतिए उवगरणजाए अचित्ते परिहरणारिहे कप्पइ से सागारिकडं गहाय तं सरीरगं एगंते बहुफासुए पएसे परिद्ववेत्ता तत्थेव उवनिक्खिवियत्वे सिया।
२९. यदि किसी भिक्षु का रात्रि में या विकाल में निधन हो जाय तो उस मृत भिक्षु के शरीर को कोई वैयावृत्य करने वाला साधु एकान्त में सर्वथा अचित्त प्रदेश पर परठना चाहे तब
यदि वहां उपयोग में आने योग्य गृहस्थ का अचित्त उपकरण अर्थात् वहन योग्य काष्ठ हो तो उसे प्रातिहारिक (पुनः लौटाने का कहकर) ग्रहण करे और उससे मृत भिक्षु के शरीर को एकान्त में सर्वथा अचित्त प्रदेश पर परठ कर उस वहन-काष्ठ को यथास्थान रख देना चाहिए।
विवेचन-भिक्षु जहां पर मासकल्प आदि रहा हो वहां उस निवासकाल में यदि भक्तप्रत्याख्यानी साधु का, रुग्ण साधु का अथवा सांप आदि के काटने से किसी अन्य साधु का मरण हो जाय तो उस शव को वसति या उपाश्रय में अधिक समय रखना उचित नहीं है, क्योंकि भाष्यकार कहते हैं कि जिस समय मरण हो उसी समय उस शव को बाहर कर देना चाहिए। अतः वहां वैयावृत्य करने वाले साधु यदि चाहें तो वे रात्रि में भी परठने योग्य भूमि पर ले जाकर परठ सकते हैं। परठने के लिये प्रातिहारिक उपकरण की याचना करने का सूत्र में विधान किया गया है। अतः उस ग्रामादि में या उपाश्रय में वहनकाष्ठ या बांस अथवा डोली आदि जो भी मिल जाए उसका उपयोग किया जा सकता है एवं पुनः उस उपकरण को लौटाया जा सकता है।
पादपोपगमन संथारा वाले के शरीर का दाहसंस्कार तो किया ही नहीं जाता है। किन्तु भक्तप्रत्याख्यान संथारे में दाहसंस्कार का विकल्प भी है।
जहां कोई भी दाहसंस्कार करने वाले न हों वहां साधु द्वारा इस सूत्रोक्त विधि के अनुसार किया जाता है, ऐसा समझना चाहिए। क्योंकि भिक्षु तो दाहसंस्कार की आरंभजन्य प्रवृति का संकल्प भी नहीं कर सकते।
___ किन्तु जहां श्रावकसंघ हो या अन्य श्रद्धालु गृहस्थ हों वहां वे सांसारिक कृत्य समझकर कुछ लौकिक क्रियाएँ करें तो भिक्षु उससे निरपेक्ष रहते हैं।
तीर्थंकर एवं अन्य अनेक कालधर्मप्राप्त भिक्षुओं के दाहसंस्कार किये जाने का वर्णन आगमों में भी है। अतः भक्तप्रत्याख्यानमरण वाले भिक्षुओं की अन्तिम क्रियाओं के दोनों ही विकल्प हो सकते हैं, यथा
१. साधु के द्वारा परठना या २. गृहस्थ द्वारा दाहसंस्कार करना।
भाष्यकार ने शव को परठने योग्य दिशाओं का भी वर्णन किया है। साधुओं के निवासस्थान से दक्षिण-पश्चिमदिशा (नैऋत्यकोण) शव में परठने के योग्य शुभ बतलायी है। इस दिशा में परठने