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________________ २१०] [बृहत्कल्पसूत्र कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। २०. यदि कोई भिक्षु स्वगण को छोड़कर अन्यगण को (श्रुतग्रहण करने के लिये) स्वीकार करना चाहे तो उसे १. आचार्य, २. उपाध्याय, ३. प्रवर्तक, ४. स्थविर, ५. गणी, ६. गणधर या ७. गणावच्छेदक को पूछे बिना अन्य गण को स्वीकार करना नहीं कल्पता है। किन्तु आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछकर अन्यगण को स्वीकार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा दें तो अन्यगण को स्वीकार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा न दें तो अन्यगण को श्रुत ग्रहण के लिये स्वीकार करना नहीं कल्पता है। २१. यदि गणावच्छेदक स्वगण को छोड़कर श्रुतग्रहण के लिये अन्य गण को स्वीकार करना चाहे तो उसे अपने पद का त्याग किए विना अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना नहीं कल्पता है। उसे अपने पद को त्याग करके अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना कल्पता है। आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे विना उसे अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना नहीं कल्पता है। किन्तु आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछकर अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा दें तो उसे अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा न दें तो उसे अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना नहीं कल्पता है। २२. आचार्य या उपाध्याय यदि स्वगण को छोड़कर अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना चाहें तो उन्हें अपने पद को त्याग किए विना अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना नहीं कल्पता है। अपने पद को त्याग करके अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना कल्पता है। आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे विना उन्हें अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना नहीं कल्पता है। किन्तु आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछकर अन्यगण को श्रुतग्रहण के लिये स्वीकार करना कल्पता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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