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________________ चौथा उद्देशक] [२०३ २. आचारांग सूत्र की वाचना दिए बिना छेदसूत्रों की वाचना दे या दिलवावे। ३. अविनीत या अयोग्य साधुओं को कालिकश्रुत की वाचना दे। ४. विनयवान् योग्य साधुओं को यथासमय वाचना देने का ध्यान न रखे। ५. विगयों का त्याग नहीं करने वाले एवं कलह को उपशान्त नहीं करने वाले को वाचना दे। ६. सोलह वर्ष से कम उम्र वाले को कालिकश्रुत (अंगसूत्र या छेदसूत्र) की वाचना दे। ७. समान योग्यता वाले साधुओं में से किसी को वाचना दे, किसी को न दे। ८. स्वगच्छ के या अन्यगच्छ के शिथिलाचारी साधु को वाचना दे। ९. मिथ्यामत वाले गृहस्थ को वाचना दे या उसे वाचना लेने वालों में बिठावे तो इनको लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। -निशीथ उ. १९, सूत्र १६-३५ शिक्षा-प्राप्ति के योग्यायोग्य के लक्षण १२. तओ दुस्सन्नप्पा पण्णत्ता, तं जहा १. दुठे, २. मूढे, ३. वुग्गाहिए। १३. तओ सुसनप्पा पण्णत्ता, तं जहा १. अदुट्टे, २. अमूढे, ३. अवुग्गाहिए। १२. ये तीन दुःसंज्ञाप्य (दुर्बोध्य) कहे गये हैं, यथा १. दुष्ट-तत्त्वोपदेष्टा के प्रति द्वेष रखने वाला, २. मूढ-गुण और दोषों से अनभिज्ञ, ३. व्युद्ग्राहित-अंधश्रद्धा वाला दुराग्रही। १३. ये तीन सुसंज्ञाप्य (सुबोध्य) कहे गए हैं, यथा १. अदुष्ट-तत्त्वोपदेष्टा के प्रति द्वेष न रखने वाला, २. अमूढ-गुण और दोषों का ज्ञाता, ३. अव्युद्ग्राहित-सम्यक् श्रद्धा वाला। विवेचन-१. 'दुष्ट' जो शास्त्र की प्ररूपणा करने वाले गुरु आदि से द्वेष रखे अथवा यथार्थ प्रतिपादन किये जाने वाले तत्त्व के प्रति द्वेष रखे, उसे 'दुष्ट' कहते हैं। २. मूढ-गुण और अवगुण के विवेक से रहित व्यक्ति को 'मूढ' कहते हैं। ३. व्युद्ग्राहित-विपरीत श्रद्धा वाले अत्यन्त कदाग्रही पुरुष को 'व्युद्ग्राहित' कहते हैं। ये तीनों ही प्रकार के साधु दुःसंज्ञाप्य हैं अर्थात् इनको समझना बहुत कठिन है, समझाने पर भी ये नहीं समझते हैं, इन्हें शिक्षा देने या समझाने से भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। अतः ये सूत्रवाचना के पूर्ण अयोग्य होते हैं। किन्तु जो द्वेषभाव से रहित हैं, हित-अहित के विवेक से युक्त हैं और विपरीत श्रद्धा वाले या कदाग्रही नहीं हैं, वे शिक्षा देने के योग्य होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को ही श्रुत
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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